रायबरेली: आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने के लिए अमेरिका इकाई की अध्यक्ष मंजु मिश्रा एवं निफ्ट के निवर्तमान निदेशक डा भारत साह का अभिनंदन किया गया. इस अवसर पर मिश्रा ने कहा कि आचार्य द्विवेदी का आधुनिक हिंदी साहित्य में अद्भुत योगदान है. इसलिए उनके जन्म स्थान दौलतपुर को सरकारों को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित करना चाहिए ताकि भावी पीढ़ियां प्रेरणा ग्रहण कर सकें. डा साह ने कहा कि देश में हिंदी को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है. हिंदी की उन्नति के बिना हिंदुस्तान मजबूत नहीं होगा. इस अवसर पर संयोजक गौरव अवस्थी, सह संयोजक विनय द्विवेदी, अध्यक्ष विनोद शुक्ल, महामंत्री अनिल मिश्र ने इन दोनों शख्सियतों द्वारा आचार्यजी से जुड़े अभियान में दिए गए योगदान पर प्रकाश डाला. इस अवसर पर ग्रामीण बैंक कर्मचारी कल्याण परिषद के संरक्षक विनोद शुक्ला, रोटरी क्लब अध्यक्ष राकेश कक्कड़, स्वतंत्रता सेनानी आश्रित संगठन के जिलाध्यक्ष अनिल कुमार मिश्र, डा सुशील चंद्र मिश्र, डा राकेश तिवारी, राजीव भार्गव, निफ्ट की असिस्टेंट प्रोफेसर प्रतिभा, धर्मेंद्र तिवारी, राकेश मोहन मिश्रा, कृष्ण मनोहर मिश्र, करुणा शंकर मिश्रा, अमित सिंह, यादवेन्द्र प्रताप सिंह, सुधीर द्विवेदी, स्वतंत्र पांडेय, डा निशांत मिश्र, अभिषेक मिश्रा, मधु कक्कड़, प्राची मिश्रा, राजेश द्विवेदी, नीलेश मिश्रा, इंदु मिश्रा, प्रिया पांडेय आदि उपस्थित थे. आभार डा विवेक यादव ने व्यक्त किया.
याद रहे कि वर्ष 2017 में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी युग प्रेरक सम्मान से सम्मानित मंजु मिश्रा कैलिफोर्निया में हिंदी का प्रचार-प्रसार करती हैं. उन्होंने 2 वर्ष पहले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की अमेरिका इकाई की कमान संभाली थी. अमेरिका इकाई अब तक एक दर्जन से अधिक आनलाइन कार्यक्रम आयोजित कर चुकी है. इन कार्यक्रमों में देश और विदेश के हिंदी के विद्वानों ने हिंदी भाषा के स्वरूप और आचार्य द्विवेदी के योगदान पर अपने महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए. आचार्य द्विवेदी के महत्त्व को ऐसे भी समझ सकते हैं कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने आचार्य द्विवेदी द्वारा सरस्वती में विज्ञान और तकनीक पर लिखे गए लेखों का संग्रह विज्ञान वार्ता शीर्षक से 1930 में अपने संपादन में प्रकाशित किया था. निफ्ट के निवर्तमान निदेशक डा भारत साह ने समिति के अनुरोध पर विज्ञान वार्ता पुस्तक को अपने निजी खर्चे से फिर से प्रकाशित कराया. आचार्य द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान में उनके साथ ही अन्य साहित्यसेवी भी जुड़े हैं.