लखनऊ: “षड्यंत्र के तहत हमारी संस्कृति, परंपरा और आस्थाओं पर हमले आज भी जारी हैं, लेकिन यह दोषारोपण का नहीं आत्मनिरीक्षण और आत्म-सुधार का समय है. इतिहास को विकृत करने वाले वामपंथियों और अन्य इतिहासकारों को दोष देने के बजाय हमें सच्चाई सामने लाने के लिए समर्पित प्रयास करना चाहिए.” संवादी के तहत ‘राष्ट्रीय स्वत्व का संघर्ष’ सत्र में आरएसएस की बौद्धिक शाखा प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार ने दैनिक जागरण के संपादक उत्तर प्रदेश आशुतोष शुक्ल ने बातचीत में यह बात कही. अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वत्व के लिए संघर्ष अतीत, वर्तमान और भविष्य’ पर चर्चा करते हुए जे नंदकुमार ने स्वत्व को परिभाषित किया. उन्होंने कहा कि सशक्त राष्ट्र तभी निर्मित होगा जब नागरिकों में स्वत्व यानी सेल्फहुड की भावना प्रबल होगी. हर व्यक्ति के आचरण में फर्क होता है, लेकिन जब समाज के लोगों में स्वत्व की भावना समान रूप से होगी तो राष्ट्र सशक्त होगा. आशुतोष शुक्ल ने जिज्ञासा जताई कि क्या कारण था कि एक प्रचारक को लेखक के रूप में इतिहास का सच सामने लाने के लिए कलम उठानी पड़ी तो नंदकुमार ने कहा कि जब तक सच सामने नहीं आता तब तक झूठ को सच माना जाता है, झूठा कहने में ऊर्जा व्यर्थ करने से बेहतर है कि सच सामने लाएं. उन्होंने कहा कि स्वत्व ही समाज को राष्ट्र में परिवर्तित करते हैं और यही हमारी ताकत हैं. पूरे विश्व में रोम, ग्रीस, इजिप्ट का विनाश हो गया, लेकिन कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी. हम 15 अगस्त 1947 को स्वाधीन तो हो गए, लेकिन स्वतंत्र होने की यात्रा अभी भी बाकी है.

शुक्ल ने याद दिलाया कि कैसे ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों एवं ईसाई मिशनरियों, मुस्लिम चाटुकार, धनलोभी एवं दरबारी लेखकों को प्रश्रय दिया गया. प्रोफेसर आरसी मजूमदार को पं. नेहरू के शासनकाल में इतिहास लेखन से हटाकर ताराचंद को सौंपा जाना सामान्य घटना नहीं थी. यहां कामरेड राजकृष्ण जैसे लोग भी थे, जिन्होंने पुनर्जन्म की अवधारणा का उपहास उड़ाते हुए हिंदू ग्रोथ रेट को दरिद्रता से परिभाषित कर दिया. ऐसे लोग आज भी भारत को मजहबी देश बनाने में लगे हैं. पूर्व में ‘नर्मदा एक दिन गंगा का महत्व कम कर देगी’ जैसे बयानों के साथ ही आज भी हमारे प्रतीकों पर हमले जारी हैं, लेकिन उनसे लड़ने की जगह हमें बड़ी लकीर खींचनी होगी. हम सनातन काल से ही चार वर्ण में थे, लेकिन अंग्रेजों के बाद राजनेताओं ने हमें जातियों में बांटा, यह क्रम जारी है. शुक्ल ने जब हिंदू और हिंदुत्व को लेकर चल रही बयानबाजी की चर्चा छेड़ी तो जे नंदकुमार ने कहा कि हिंदुत्व का अर्थ है हिंदू तत्व, लेकिन एक शब्द बहुत प्रयोग हो रहा है हिंदुइज्म, जबकि हिंदुत्व और इसमें जमीन आसमान का अंतर है. शुक्ल ने जब उत्तर के मुकाबले दक्षिण को ज्यादा सनातनी बताया तो जे नंदकुमार ने असहमति जताते हुए कहा कि उत्तर भारतीयों ने हमेशा धर्म के ऊपर राष्ट्र को रखा. इसका उदाहरण आपातकाल है, जब बिहार ने तो बगावत की, लेकिन केरल ने सबसे ज्यादा सीटें आपातकाल थोपने वाली पार्टी को दीं. उन्होंने चेताया कि केरल में जिस तरह कटिंग साउथ अभियान चलाया जा रहा है, वहां जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर जैसे हालात पैदा करने की नींव रखी जा रही है. दर्शक दीर्घा से लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति आलोक राय ने तमिल और मलयालम भाषाओं को देवनागरी में देने का अनुरोध किया तो नंदकुमार ने उनको अपने यहां दक्षिण की भाषाओं के विभाग प्रारंभ करने की सलाह दी. शुक्ल ने भी आग्रह किया कि जितने प्यार की अपेक्षा हम हिंदी के लिए करते हैं, उतना प्यार हमें दक्षिण की भाषाओं को देना चाहिए.