पटना: “प्रकृति के मुग्धकारी रूप और सुषमा को काव्य में पिरोनेवाले कृतात्मा कवि कलक्टर सिंह केसरी पिछली पीढ़ी के एक ऐसे कवि और विद्वान आचार्य थे, जिन्हें प्रकृति-राग का अमर गायक माना जाता है. आधुनिक हिंदी के कविता के इतिहास में वे छायावाद और उत्तर-छायावाद के मिलन-बिंदु हैं. उनके मनोहारी काव्य में इन दोनों ही युगों की मधुरतम झंकार सुनाई देती है.” यह बात कलक्टर सिंह केसरी जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही. सम्मेलन ने ही यह आयोजन कराया था. सुलभ ने कहा कि केसरी जी समस्तीपुर महाविद्यालय के संस्थापक प्राचार्य और विश्वविद्यालय सेवा आयोग के सदस्य थे. उन्होंने अध्यक्ष के रूप में भी अपनी प्रशासकीय निपुणता का परितोषप्रद परिचय दिया. वे दो बार बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए. कलक्टर सिंह केसरी सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य के विशाल मंदिर के दीप्तिमान स्वर्ण-कलश थे, जिन पर बिहार को सदा गौरव रहेगा.
इससे पहले अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि कलक्टर सिंह केसरी की कविताओं से हम जैसे लोगों को साहित्य का संस्कार प्राप्त हुआ है. उनकी कोमलकांत रचनाएं मन को स्पर्श करती हैं. उनका साहित्यिक व्यक्तित्व बहुत विराट था. जयंती समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, ई आनन्द किशोर मिश्र, अवध बिहारी सिंह और कृष्ण रंजन सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए और अपने-अपने ढंग से कलक्टर सिंह केसरी और उनके साहित्य को याद किया. इस अवसर पर एक कवि-सम्मेलन भी आयोजित हुआ, जिसका आरंभ वाणी-वंदना से चंदा मिश्र ने किया. सम्मेलन में वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, कुमार अनुपम, कुमारी लता पराशर, डा नीतू चौहान, जय प्रकाश पुजारी, ई अशोक कुमार, डा सुषमा कुमारी आदि काव्य-प्रेमी श्रोता उपस्थित थे.