नई दिल्ली: महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं अतीत के स्मृति चिन्ह नहीं हैं, बल्कि वे हमारे भविष्य के लिए कम्पास की भांति दिशा-निर्देशक हैं.” राजधानी दिल्ली में शांति के लिए एशियाई बौद्ध सम्मेलन की 12वीं आम सभा को संबोधित करते हुए यह बात उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कही. उन्होंने कहा कि गौतम बुद्ध का शांति, सद्भाव और सह-अस्तित्व का संदेश नफरत और आतंक की उन ताकतों के खिलाफ खड़ा है, जिनसे विश्व को खतरा हैं. उपराष्ट्रपति ने टिप्पणी की कि नैतिक अनिश्चितता के युग में बुद्ध की शिक्षाएं सभी के लिए स्थिरता, सादगी, संयम और श्रद्धा का मार्ग प्रशस्त करती हैं. धनखड़ ने कहा कि महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग हमें आंतरिक शांति, करुणा और अहिंसा के मार्ग की ओर ले जाते हैं- जो आज के संघर्षों का सामना कर रहे व्यक्तियों और राष्ट्रों के लिए एक परिवर्तनकारी रोडमैप हैं. 12वीं महासभा की विषय-वस्तु ‘शांति के लिए एशियाई बौद्ध सम्मेलन- ग्लोबल साउथ का बौद्ध स्वर’ का उल्लेख करते हुए धनखड़ ने कहा कि यह विषय भारत की बढ़ती नेतृत्व भूमिका के अनुरूप है, जो ग्लोबल साउथ की समस्याओं को विश्व मंचों पर उठा रहा है.
उपराष्ट्रपति ने सेवा-संचालित शासन के भारत के दृष्टिकोण पर बुद्ध की शिक्षाओं के गहरे प्रभाव के बारे में जानकारी दी. उन्होंने रेखांकित किया कि कैसे ये सिद्धांत नागरिक कल्याण, समावेशिता और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देने की देश की प्रतिबद्धता में एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में कार्य करते हैं. बुद्ध के कालातीत ज्ञान पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि प्राणियों के लिए भी शांति का एक शक्तिशाली, सामंजस्यपूर्ण, संपूर्ण, निर्बाध मार्ग प्रदान करता है. उपराष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन, संघर्ष, आतंकवाद और गरीबी जैसी समकालीन चुनौतियों से निपटने में बुद्ध के सिद्धांतों की सार्वभौमिक प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया. उन्होंने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को आशा की किरण के रूप में उजागर करते हुए, इन अस्तित्वगत खतरों को दूर करने के लिए एक सहयोगात्मक, सामूहिक दृष्टिकोण का आह्वान किया. सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू, शांति के लिए एशियाई बौद्ध के अध्यक्ष डी चोइजामत्सडेम्बरेल, कंबोडिया के उप मंत्री डा ख्यसोवनरत्न और विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.