बिहार संवादी 2024
बिहार में संवाद की समृद्ध परंपरा रही है। सहरसा के महिषी में शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था जिसमें मंडन मिश्र पराजित हुए थे । मंडन मिश्र के पराजय के बाद उनकी अर्धांगिनी भारती मिश्र ने शंकराचार्य को पराजित किया था। कहना ना होगा कि बिहार में संवाद की परंपरा लंबे समय तक कायम रही लेकिन कालांतर में स्थितियां इस तरह बदलीं कि संवाद की उस गौरवशाली परंपरा का क्षरण होता चला गया। फिर आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन की अवधारणा सामने आई और चारों ओर उसका ही बोलबाला होने लगा। संवाद की जगह बहस के आने से नकारात्मकता प्रबल होने लगी। संवाद से हर चीज का हल निकलता है लेकिन बहस चाहे जितनी लड़ा लें उससे कोई सकारात्मक परिणाम निकलने की गुंजाइश कम होती है। संवाद की उसी कमी को पूरा करने की कोशिश है संवादी बिहार। बिहार में संवाद की उसी गौरवशाली और समृद्ध परंपरा को फिर से मजबूत करने के लिए दैनिक जागरण ने संवादी बिहार का आयोजन करने का फैसला किया है। इस आयोजन से साहित्य के अलावा समाज में भी सकारात्मकता का बीजारोपण हो सकेगा तो यह उपक्रम सार्थक होगा।
बिहार की धरती पर साहित्य, कला, संस्कृति, पत्रकारिता, थिएटर और सिनेमा के क्षेत्र में एक से एक प्रतिभाशाली शख्सियतों ने जन्म लिया। दिनकर ने यही ‘हुंकार’ भरी तो रेणु ने भी ‘मैला आंचल’ जैसी कालजयी कृति की रचना की। बाबा नागार्जुन ने यहीं की धरती से अपनी कलम की नोंक से हिंदी कविता को एक नई दिशा दी। बिहार संवादी का उद्देश्य एक ऐसा मंच देना है जहां से पूरे देश में प्रदेश की रचनात्मकता की धमक महसूस की जा सके।
संवादी बिहार लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों का अपना मंच होगा जहां वो साहित्यक, सामाजिक सांस्कृतिक मसलों पर संवाद कर सकेंगे। संवादी बिहार में बिहार के लेखकों की रचनात्मकता बेहतर तरीके से दुनिया के सामने लाने का उपक्रम भी किया जाएगा । साहित्य का सत्ता विमर्श से लेकर बिहार की कथा भूमि पर चर्चा होगी । पिछले दिनों हिंदी को उसकी बोलियों और अन्य उपभाषाओं से अलग करने को लेकर भी बुद्धिजीवियों के बीच बहस हुई। बोलियों के बिना क्या किसी भाषा का अस्तित्व हो सकता है, क्या बोलियों को अलग करने से हिंदी कमजोर होगी, क्या हिंदी की उपभाषाएं अंग्रेजी के कुचक्र में फंसकर हिंदी विरोध का रास्ता अपना रही हैं। इन प्रश्नों के उत्तर भी ढूंढने की कोशिश होगी। इसके अलावा हिंदी में लेखकों का एक ऐसा वर्ग रहा है जो लंबे समय से साहित्य की परिधि पर रहा लेकिन अपने लेखन के आवेग से अब वो साहित्य के केंद्र तक पहुंचकर दस्तक दे रहा है। इस बदलाव को रेखांकित करने की कोशिश होगी। कहा जाता है कि संगीत के बगैर संस्कृति रसविहीन होती है। संगीत के विभिन्न आयामों पर चर्चा होगी ही, बिहार की धरती से उठकर कलाजगत पर छा जानेवालों शख्सियतों से भी रू ब रू होने का मौका मिलेगा। दो दिनों तक बारह सत्रों में विमर्श के सभी कोण, कई आयाम देखने सुनने को मिलेंगे। संबादी बिहार इस मायने में देश-दुनिया के लिटरेचर फेस्टिवल से अलग है क्योंकी इसमें स्थानीय प्रतिभाओं को अनिवार्य प्राथमिकता दी जाएगी।