पटना: “विश्व की 36 भाषाओं के ज्ञाता और प्रयोक्ता थे महापंडित राहुल सांकृत्यान. हिंदी का संसार उन्हें यात्रा-साहित्य के पितामह के रूप में मान्यता देता है. बौद्ध-साहित्य से संबद्ध अनेकों दुर्लभ ग्रंथों की पांडुलिपियां तिब्बत से खच्चरों पर लाद कर वे लेकर आए और भारत को दी. वह अमूल्य धरोहर आज भी पटना के संग्रहालय में उपलब्ध है.” यह बात बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही. डा सुलभ ने कहा कि राहुल सांकृत्यान की विद्वता और मेधा अद्भुत थी, जिनसे प्रभावित होकर काशी के पंडितों ने उन्हें महापंडित की उपाधि दी.
सुलभ का कहना था कि महापंडित राहुल सांकृत्यान बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के भी अध्यक्ष थे, जिस पर सम्मेलन को सदा गौरव रहेगा. इस अवसर पर स्मृति-शेष कवयित्री गिरिजा वर्णवाल का भी स्मरण किया गया. उन्हें याद करते हुए सुलभ ने कहा कि वर्णवाल लेखन-प्रतिभा और काव्य-लालित्य से संपन्न विदुषी थीं. उन्होंने अपनी समस्त साहित्यिक-प्रतिभा को अपने पति और हिंदी-सेवी नृपेंद्रनाथ गुप्त को अर्पित कर दिया था. इस रूप में उन्होंने भारतीय नारी के त्याग और समर्पण की जीवंत मूर्ति के रूप में अपने को स्थापित किया था. इस अवसर पर सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे.