लखनऊ: “अवधी भाषा कभी राज्याश्रय में नहीं रही. लोक से जुड़े होने के कारण वह हमेशा जनमानस में रही है. अवधी में कविता के अलावा निबंध, कहानी, उपन्यास लिखे गए, जिसने आधुनिक संदर्भों के प्रति जागरूकता उत्पन्न की है.” यह बात प्रोफेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कही. वे अंतरराष्ट्रीय भाषा संस्थान सूरत और लखनऊ विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित ‘भाषा महोत्सव‘ में ‘अवधी में लोक साधना: रचना से आलोचना तक‘ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर अध्यक्ष बोल रहे थे. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पूर्व डीजीपी व राज्यसभा सदस्य ब्रजलाल शामिल हुए. विशिष्ट अतिथि के रूप में उच्च न्यायालय के निबंधक महेंद्र भीष्म, न्यायाधीश ब्रजमोहन गुप्ता, छोटे लाल मिश्र, श्रम आयुक्त राम सागर यादव भी मौजूद रहे. लखनऊ विवि के वरिष्ठ प्रोफेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह व प्रोफेसर पवन अग्रवाल ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई.
इस अवसर पर संगोष्ठी के अलावा, पुस्तक विमोचन और साहित्यकारों का अभिनंदन भी हुआ. कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय भाषा संस्थान की पत्रिका के साथ, देवेंद्र कश्यप निडर की पुस्तक ‘श्रमवीर‘, धनसिंह मेहता की पुस्तक ‘कोई माने या न माने‘, डा आकांक्षा दीक्षित की कृति ‘प्रेम दूत‘, डा गंगा प्रसाद शर्मा की ‘अनुदित जी आसा से निकासा‘, उमाशंकर शुक्ला रचित ‘लोक नायक गुरुनानक देव‘ व ‘गौतमबुद्ध चरित्र‘ का लोकार्पण किया गया. इस मौके पर दूरदर्शन और आकाशवाणी के कलाकारों ने संगीतमय प्रस्तुति दी. साथ ही साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक शिक्षाविदों, अवधी साहित्य साधकों एवं लोक कलाकारों को सम्मानित किया गया. कार्यक्रम में भाषा संस्थान के अध्यक्ष डा गंगा प्रसाद शर्मा मौजूद रहे. डा भास्कर शर्मा को सूर्यप्रसाद दीक्षित अलंकरण, फारूक सरल को रमई काका सम्मान, राजेंद्र कुमार, रमेश दुबे व संदीप मिश्र सरस रमेश बाजपेई आकांक्षा दीक्षित, राजेंद्र चौधरी, ममता सक्सेना, ममता सिंह, शताक्षी व निधि दुबे को सम्मानित किया गया.