वाराणसी: “संतों की वाणी हर युग में हमें रास्ता भी दिखाती हैं, और हमें सावधान भी करती हैं. रविदास जी कहते थे- ‘जात पात के फेर महि, उरझि रहई सब लोग / मानुष्ता कुं खात हई, रैदास जात कर रोग.‘ अर्थात ज्यादातर लोग जात-पांत के भेद में उलझे रहते हैं, उलझाते रहते हैं. जात-पात का यही रोग मानवता का नुकसान करता है. यानी, जात-पात के नाम पर जब कोई किसी के साथ भेदभाव करता है, तो वो मानवता का नुकसान करता है. अगर कोई जात-पात के नाम पर किसी को भड़काता है तो वो भी मानवता का नुकसान करता है.” यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी में संत गुरु रविदास की 647वीं जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कही. इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पास सीर गोवर्धनपुर में संत गुरु रविदास जन्मस्थली मंदिर में उनकी नव स्थापित प्रतिमा का उद्घाटन किया. उन्होंने संत रविदास जन्मस्थली के आसपास लगभग 32 करोड़ रुपए के विभिन्न विकास कार्यों का भी उद्घाटन किया और लगभग 62 करोड़ रुपई की लागत से संत रविदास संग्रहालय और पार्क के सौंदर्यीकरण की आधारशिला रखी. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का इतिहास रहा है, जब भी देश को जरूरत हुई है, कोई न कोई संत, ऋषि, महान विभूति भारत में जन्म लेते हैं. संत रविदास उस भक्ति आंदोलन के महान संत थे, जिसने कमजोर और विभाजित हो चुके भारत को नई ऊर्जा दी थी.
प्रधानमंत्री ने कहा कि संत रविदास ने समाज को आजादी का महत्त्व भी बताया था, और सामाजिक विभाजन को भी पाटने का काम किया था. ऊंच-नीच, छुआछूत, भेदभाव, इस सबके खिलाफ उन्होंने उस दौर में आवाज उठाई थी. उन्होंने कहा कि संत रविदास एक ऐसे संत हैं, जिन्हें मत, मजहब, पंथ, विचारधारा की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता. रविदास सबके हैं, और सब रविदास के हैं. जगद्गुरु रामानन्द के शिष्य के रूप में उन्हें वैष्णव समाज भी अपना गुरु मानता है. सिख भाई-बहन उन्हें बहुत आदर की दृष्टि से देखते हैं. काशी में रहते हुए उन्होंने ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा‘ की शिक्षा दी थी. इसलिए, काशी को मानने वाले लोग, मां गंगा में आस्था रखने वाले लोग भी उनसे प्रेरणा लेते हैं. मुझे खुशी है कि आज हमारी सरकार संत रविदास के विचारों को ही आगे बढ़ा रही है. हमें जातिवाद की नकारात्मक मानसिकता से बचकर उनकी सकारात्मक शिक्षाओं का पालन करना है. प्रधानमंत्री ने कर्म की प्रधानता पर जोर देते हुए संत रविदास के इस दोहे, ‘सौ बरस लौं जगत मंहि जीवत रहि करू काम. रैदास करम ही धरम है करम करहु निहकाम‘ का जिक्र किया, जिसका अर्थ है सौ वर्ष का जीवन हो, तो भी पूरे जीवन हमें काम करना चाहिए. क्योंकि, कर्म ही धर्म है. हमें निष्काम भाव से काम करना चाहिए. संत रविदास की ये शिक्षा आज पूरे देश के लिए है.