नई दिल्ली: “देशभक्ति के गीत हों या आध्यात्मिक उपदेश होंचारण साहित्य ने सदियों से अहम भूमिका निभाई है.” यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह बात आई सोनल मां के जन्म शताब्दी कार्यक्रम को वीडियो संदेश से संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि भगवती स्वरूपा सोनल मां इस बात का साक्षात उदाहरण रहीं कि भारत भूमि किसी भी युग में अवतारी आत्माओं से खाली नहीं होती है. गुजरात और सौराष्ट्र की ये धरती तो खास तौर पर महान संतों और विभूतियों की भूमि रही है. कितने ही संत और महान आत्माओं ने इस क्षेत्र में पूरी मानवता के लिए अपना प्रकाश बिखेरा है. पवित्र गिरनार तो साक्षात भगवान दत्तात्रेय और अनगिनत संतों का स्थान रहा है. सौराष्ट्र की इस सनातन संत परंपरा में सोनल मां आधुनिक युग के लिए प्रकाश स्तम्भ की तरह थीं. उनकी आध्यात्मिक ऊर्जाउनकी मानवीय शिक्षाएंउनकी तपस्याइससे उनके व्यक्तित्व में एक अद्भुत दैवीय आकर्षण पैदा होता था. उसकी अनुभूति आज भी जूनागढ़ और मढड़ा के सोनल धाम में की जा सकती है. सोनल मां का पूरा जीवन जनकल्याण के लिएदेश और धर्म की सेवा के लिए समर्पित रहा. उन्होंने भगत बापूविनोबा भावेरविशंकर महाराजकनभाई लहेरीकल्याण शेठ जैसे महान लोगों के साथ काम किया. चारण समाज के विद्वानों के बीच उनका एक विशेष स्थान हुआ करता था. उन्होंने कितने ही युवाओं को दिशा दिखाकर उनका जीवन बदला. उन्होंने समाज में शिक्षा के प्रसार के लिए अद्भुत काम किया. सोनल मां ने व्यसन और नशे के अंधकार से समाज को निकालकर नई रोशनी दी. सोनल मांसमाज को कुरीतियों से बचाने के लिए निरंतर काम करती रहीं. कच्छ के वोवार गांव से उन्होंने बहुत बड़ा प्रतिज्ञा अभियान शुरू किया था. उन्होंने परिश्रम करके आत्मनिर्भर बनने पर हर किसी को सीख दिया था जोर दिया था. पशुधन के प्रति भी उनका उतना ही बल था. पशुधन की रक्षा करने पर वह हर क्षेत्र में हर समय आग्रह करती थीं.

सोनल मां देश के लिएचारण समाज के लिएमाता सरस्वती के सभी उपासकों के लिए महान योगदान की महान प्रतीक हैं. इस समाज को हमारे शास्त्रों में भी विशेष स्थान और सम्मान दिया गया है. भागवत पुराण जैसे ग्रन्थों में चारण समाज को सीधे श्रीहरि की संतान कहा गया है. इस समाज पर मां सरस्वती का विशेष आशीर्वाद भी रहा है. इसीलिएइस समाज में एक से एक विद्वानों ने परंपरा अविरत चलती रही है. ठारण बापूईसर दास जीपिंगलशी बापूकाग बापूमेरूभा बापूशंकरदान बापू,  शंभुदानभजनीक नारणस्वामीहेमुभाई गढवीपद्मश्री कवि दाद और पद्मश्री भीखुदान गढवी ऐसे कितने ही व्यक्तित्व चारण समाज के विचारों को समृद्ध करते रहे हैं. विशाल चारण साहित्य आज भी इस महान परंपरा का प्रमाण है. देशभक्ति के गीत होंया आध्यात्मिक उपदेश होंचारण साहित्य ने सदियों से इसमें अहम भूमिका निभाई है. सोनल मां की ओजस्वी वाणी खुद इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण रही है. उन्हें पारंपरिक पद्धति से कभी शिक्षा नहीं मिली. लेकिनसंस्कृत भाषा उस पर भी उनकी अद्भुत पकड़ थी. शास्त्रों का उन्हें गहराई से ज्ञान प्राप्त था. उनके मुख से जिसने भी रामायण की मधुर कथा सुनीवो कभी नहीं भूल पाया.  हम सब कल्पना कर सकते हैं कि आज जब अयोध्या में 22 जनवरी को श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होने जा रहा हैतो सोनल मां कितनी प्रसन्न होंगी. आज इस अवसर पर मैं आप सभी से, 22 जनवरी को हर घर में श्रीराम ज्योति प्रज्वलित करने का आग्रह भी करूंगा. कल से ही हमने अपने मंदिरों में स्वच्छता के लिए विशेष अभियान भी शुरू किया है. इस दिशा में भी हमें मिलकर काम करना है.