इंदौर: श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति ने कालजयी साहित्य का स्मरण शृंखला की 16वीं कड़ी में हिंदी गद्य के पुरोधा कहानीकार भीष्म साहनी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गोष्ठी आयोजित की. प्रचार मंत्री हरे राम वाजपेयी के मुताबिक 8 अगस्त, 1915 को रावलपिंडी में जन्मे भीष्म साहनी प्रगतिशील कथा साहित्य के ऐसे रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने हिंदी उपन्यास के क्षेत्र में प्रगतिशील उपन्यास की संपूर्ण आकृति स्थिर करने में लगन और परिश्रम से कार्य किया. उन्हीं की देन है कि प्रगतिशील उपन्यास धारा ने साहित्य और युग के प्रति अपने दायित्व को न केवल गंभीरतापूर्वक निभाया है वरन् साहित्य को सामाजिक जीवन के यथार्थ से पृथक करने वाली सभी मान्यताओं का मूलतः परित्याग किया है. इस अवसर पर अतिथियों द्वारा भीष्म साहनी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई.
साहित्य गोष्ठी में मुख्य अतिथि सुरेंद्र नारायण सक्सेना ने कहा कि भीष्म साहनी ने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के बाद और देश के विभाजन पर हुए तमाम दृश्यों को जिनमें दंगा, विस्थापन, विभाजन की पीड़ा थी को अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया. भीष्म साहनी ने भोगे हुए यथार्थ को शब्दायित किया. आशा जाखड़ ने कहा कि साहनी आधुनिक हिंदी साहित्य के स्तंभ व मानवीय मूल्यों के साहित्यकार थे. डॉ अर्पण जैन ने विस्थापन की पीड़ा के संदर्भ में उनके साहित्य को प्रस्तुत किया. डॉ अखिलेश राव, आरती दुबे, मणिमाला शर्मा, ममता सक्सेना, वाणी जोशी एवं वीरेंद्र गोस्वामी ने भी भीष्म साहनी के साहित्यिक कृतित्व-व्यक्तित्व पर विचार रखें. कार्यक्रम की भूमिका एवं संचालन साहित्य और संस्कृति मंत्री डॉ पद्मासिंह ने किया. प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर ने आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम में साहित्य प्रेमियों के अलावा अनिल भोजे, घनश्याम यादव, अश्विन खरे, छोटेलाल भारती, हेमेंद्र मोदी, मीना सक्सेना आदि उपस्थित थे.