उदयपुर: स्थानीय प्रताप गौरव केंद्र में महाराणा प्रताप जयंती पर ‘जो दृढ़ राखे धर्म को‘ नामक कवि सम्मेलन हुआ, तो समूचा इलाका ‘राणा की जय-जय, शिवा की जय-जय‘ से गूंज उठा. सरस्वती वंदना और महाराणा प्रताप को नमन के साथ कवि सम्मेलन की शुरुआत हुई. सम्मेलन में वीर रस के कवि डा हरिओम सिंह पंवार ने ‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नहीं गाता, दरबारों के लिए कभी अभिनंदन गीत नहीं गाता, गौण भले हो जाऊं लेकिन मौन नहीं हो सकता मैं, पुत्र मोह में शस्त्र त्यागकर द्रोण नहीं हो सकता मैं, मैं शब्दों की क्रांति ज्वाल हूं वर्तमान को गाऊंगा, जिस दिन मेरी आग बुझेगी मैं उस दिन मर जाऊंगा‘ सुनाकर श्रोताओं में देशभक्ति का ज्वार भर दिया. किशोर पारीक ‘किशोर‘ ने ‘स्वाभिमान के प्रबल प्रवर्तक, हिंदू गौरव के उद्घोषक, जन्म जयन्ती पर राणा की श्रद्धा से, सारा भारत है नत मस्तक‘ और ‘उस मेवाड़ी समरांगण में, चेतक के बलिदानी प्रण में, महाराणा का त्याग आज भी जिंदा है, हल्दीघाटी के कण कण में‘ सुनाकर श्रोताओं की दाद लूटी. मनु वैशाली ने ‘जौहर-कुण्डों, घास-रोटियों, बलिदानी परिपाटी को, वीर प्रसूता, स्वर्णिम धोरे, पावन हल्दीघाटी को, राजपुतानी, राजस्थानी, शान बान राणाओं की, सौ-सौ नमन निवेदित है इस धन्य मेवाड़ी माटी को‘ सुनाकर भक्ति और शक्ति की धरा को नमन किया.
बृजराज सिंह जगावत ने ‘हिंदुआ एक सूरज है तो ये इतिहास ज़िंदा है, अटल प्रण की धरा मेवाड़ स्वाभिमान जिंदा है‘ सुनाकर प्रताप के स्वाभिमान की व्याख्या की. शिवांगी सिंह सिकरवार ने ‘नयनों से जी भर तुम्हें देखती हूं, चरणों के दर्शन से धन्य रहती हूं, क्या-क्या मैं मांगू, और क्या न मांगू, श्रीनाथ तुमसे तुम्हें मांगती हूं,’ सुनाते हुए माहौल में भक्ति रस घोला. अशोक चारण ने ‘नयनों में खून उतारा होठों पर हुंकार उठा ली, चेतक ने टाप भरी राणा ने भी तलवार उठा ली‘ सुनाकर दिवेर युद्ध का दृश्य जीवंत किया. कवि सुदीप भोला ने ‘बन गया मंदिर परमानेंट बन गया मंदिर परमानेंट, वहीं बना है जहां लगा था राम लला का टेंट, कारसेवकों ने दिखलाया था अपना टैलेंट, राम लला की कसम निभा दी हमने सौ परसेंट…‘ सुनाकर दर्शकों को अपनी तुकबंदी से गुदगुदाया. संचालन कर रहे राव अजातशत्रु ने ‘रण चंडी बन दोधारी पल में दृश्य भयंकर करती थी, खप्पर में आज भवानी के श्रोणित की मदिरा भरती थी, मृत्यु का तांडव देख देख खुशियों का रंग उड़ जाता था, जिस ओर मुड़े राणा बिजली सा काल उधर मुड़ जाता था,’ सुनाकर महाराणा प्रताप की शत्रुओं पर चढ़ाई की आक्रामकता का दर्शन कराया. आरंभ में कवि किशोर पारीक ने सभी कवियों का परिचय कराया. वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के पदाधिकारियों ने कवियों का सम्मान किया.