नई दिल्ली: राम-जानकी संस्थान ने अपने पूर्वजों और महापुरुषों के सम्मान के लिए एक मुहिम चला रखी है. इसी के तहत असम के वैष्णव संत और महान समाज सुधारक श्रीमंत शंकरदेव की 572वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई और उनके नाम पर एक राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की गई. शंकरदेव का जन्म असम के नौगांव जिले की बरदौवा समीप अलिपुखुरी गांव में हुआ था. माता-पिता का साया बचपन में ही उठ गया. दादी खेरसुती ने पाला-पोसा लेकिन पत्नी सूर्यवती के असामयिक निधन से मानसिक आघात लगा और वह वैरागी हो गए. शंकर‌देव ने अपने वैराग्य जीवन में भारत के विभिन्न तीर्थों का दर्शन किया और बाद में समाज में लोगों के ह्रदय से अंधकार‌ और कुरीतियां दूर कर जनजागृति उत्पन्न करने के अभियान में लग गए. वह एक नाटककार, लेखक और संगीत मर्मज्ञ भी थे. बिहार के तिरहुत क्षेत्र के एक श्रद्धालु जगदीश मिश्र के स्वागत में शंकर देव ने महानाट अभिनय भी कराया था. शंकर देव से प्रभावित जगदीश मिश्र बिहार से चलकर असम के बरदौवा पहुंचे थे और वहां शंकरदेव ‌को भागवत सुनाने के साथ ही यह ग्रंथ भी उन्हें भेंट किया था.
राम-जानकी संस्थान राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना के मुताबिक पूर्वजों और महापुरुषों के सम्मान की मुहिम के तहत असम के एक किसान-पुत्र नितुल सुतिया ने अपने माता-पिता गोवर्धन सुतिया और सरूमाई सुतिया की स्मृति में आरजेएस भारत-उदय श्रीमंत शंकर राष्ट्रीय सम्मान 2021 की घोषणा की. आगामी गणतंत्र दिवस पर यह सम्मान समारोह होगा. शांति साधना आश्रम गुवाहाटी की बहन नयन तारा का कहना है कि असम में तो श्रीमंत शंकरदेव का बड़ा नाम है. पर उनके नाम पर राम-जानकी संस्थान का राष्ट्रीय सम्मान पूरे देश की नई पीढ़ी को‌ प्रेरित करेगा. श्रीमंत शंकरदेव 22 वर्ष में ही समस्त वेद, पुराण, उपनिषद एवं व्याकरण के ज्ञाता हो गए थे. असमिया साहित्य, संस्कृति, समाज व आध्यात्मिक जीवन में उनका योगदान अविस्मरणीय है. उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक मौन अहिंसक क्रांति का सूत्रपात किया. उनके महान कार्यों ने इस क्षेत्र में सामाजिक-सांस्कृतिक एकता की भावना को सुदृढ़ किया. उन्होंने रामायण और भगवद्गीता का असमिया भाषा में अनुवाद किया. वह गृहस्थ परंपरा के वैष्णव संत थे. उनके जीवन से गृहस्थी में रहकर सन्न्यासी जीवन जीना सीखा जा सकता है. इसीलिए शंकरदेव के अनुयायी पारिवारिक जीवन में दूसरों के कल्याण की भावना रखते हैं और जागरूकता के लिए रासलीला, नृत्य-संगीत और नाटक आदि भी करते हैं.