मुजफ्फरपुर: दिनकर राष्ट्रकवि थे, पर बिहार की माटी से उनका नाता ऐसा कि समूचा राज्य उन पर इतराता है. फिर अभी तो राज्य में चुनाव भी होने वाले हैं. दैनिक जागरण ने इस बाबत बिहार की माटी के इस महान साहित्यिक योद्धा के जीवन से जुड़े स्थानों से कई बातें अपने संवाददाताओं की मार्फत पता कीं. मुजफ्फरपुर से दिनकर का खास लगाव था. उन्होंने 'रश्मिरथी' का लेखन एलएस कॉलेज में प्राध्यापक रहने के दौरान ही किया था. यह तथ्य है कि वर्ष 1950 में जब लंगट सिंह कॉलेज में स्नातकोत्तर में हिंदी की पढ़ाई शुरू हुई, तो रामधारी सिंह दिनकर ने अध्यक्ष के रूप में इस विभाग में योगदान दिया, यहीं से उन्होंने रश्मिरथी की रचना की. 1952 तक वे इस कॉलेज में रहे. कवि दिनकर यहीं आलोचक के रूप में भी उभरे. यहां अध्यापन के दौरान दिनकर की आलोचनात्मक प्रवृत्ति निखरी, उन्होंने अपनी रचना 'संस्कृति के चार अध्याय' के कुछ अंश भी यहीं लिखे. यह पुस्तक दिनकर की लंबी कार्य साधना का प्रतिफल है, इसका प्रकाशन 1956 में हुआ था और इसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था. कॉलेज में दिनकर की स्मृतियों को संजोने के लिए पार्क का नाम उनके नाम पर रखा गया, इसमें उनकी प्रतिमा भी लगाई गई है, वहीं बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के पीजी हिंदी विभाग के पुस्तकालय का नाम दिनकर के नाम पर रखा गया है, यहां दिनकर की प्रतिमा और उद्यान का भी निर्माण प्रस्तावित है. जागरण संवाददाता से बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सतीश कुमार राय ने कहा कि दिनकर का बचपन अभाव में बीता और 1928 में उन्होंने पहली रचना विजयी संदेश लिखी थी, इसके बाद 1935 में रेणुका के प्रकाशन के बाद दिनकर सर्वमान्य हुए. मुजफ्फरपुर आने के बाद उन्होंने रश्मिरथी की रचना की. यह कर्ण के चरित्र को ध्यान में रखकर लिखा गया प्रबंध काव्य है, इसे मनुष्य की शक्ति, समतामूलक समाज और बंधुत्व को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है, इसमें साधना, संकल्प और संघर्ष तीनों की अभिव्यक्ति है.
यह एक घोषित तथ्य है कि रश्मिरथी को लोग आधुनिक गीता के रूप में स्वीकार करते हैं, यह मनुष्य के कर्मवाद को पोषित करनेवाला काव्य ग्रंथ है. इसकी पंक्ति मानव जब जोर लगाता है पत्थर पानी बन जाता है, इसमें मानव की शक्ति का दिनकर ने उद्घोष किया है, इस काव्य के माध्यम से उन्होंने न्याय, धर्म, मनुष्यता और मानव की शक्ति का रेखांकन किया है. एलएस कॉलेज के हिंदी विभाग के वरीय प्राध्यापक प्रो प्रमोद कुमार का कहना था, “1942 के आंदोलन के समय जब जेपी व अन्य क्रांतिकारी गिरफ्तार हुए इसके बाद जब वे जेल से निकले तो 1944 में पटना के गांधी मैदान में एक बड़ी सभा हुई. इसमें जेपी का नागरिक अभिनंदन किया गया, इसको लेकर दिनकर जी ने साहित्यिक पटल पर जो लिखा, उसमें उनका सामाजिक सरोकार दिखता है. 'कहते हैं उसको जयप्रकाश जो नहीं मरण से डरता है…' इससे उन्हें बाद में राष्ट्रीय कवि के रूप में स्वीकृति मिली. दिनकर ने अपनी डायरी में लिखा है कि एक बार उन्हें पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि तुम जेपी पर कविता लिखते हो पर मेरे पर नहीं, डायरी में उन्होंने लिखा कि उनके सामने कैसे कहता कि कविता लिखने की प्रेरणा हृदय से आती है, जेपी के साहसिक कर्म को देखकर प्रेरणा मिली, तो मैंने कविता लिखी पर उनसे नहीं मिली इसीलिए नहीं लिखी. कुमार का कहना है कि इस बात को दिनकर सार्वजनिक रूप से नहीं कह सकते थे. प्रो प्रमोद ने यह भी बताया कि एलएस कॉलेज में रश्मिरथी के लेखन के बाद दिनकर ने संस्कृति के चार अध्याय लिखने की शुरुआत के लिए नोट्स जुटाने शुरू कर दिए थे, और बाद में वह राज्यसभा चले गए थे,