नई दिल्लीः एक उम्दा कथाकार और नाटककार के रूप में सुरेंद्र वर्मा ने वर्तमान दौर में हिंदी साहित्य पर अपनी एक खास छाप छोड़ी है. 7 सितंबर, 1941 को पैदा हुए वर्मा ने भाषा विज्ञान से स्नातकोत्तर किया और प्राचीन तथा मध्यकालीन भारतीय इतिहास, संस्कृति, रंगमंच तथा अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा पर लिखने लगे. उनकी भाषा में एक अलग तरह का प्रवाह है और विषय बिंदास. उनके पात्र बोल्ड कथानकों के साथ बहुत कुछ कहते हैं. वह जो रचते हैं, वह रंगमंच पर ही नहीं, लोगों के दिलों में भी उतर जाता है. केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी तथा भारतीय भाषा परिषद् द्वारा सम्मानित इस बड़े रचनाकार का आज जन्मदिन है. 'काटना शमी का वृक्ष, पद्मपंखुरी की धार से' के लिए उन्हें 2016 के लिए 26वें व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया था. 'काटना शमी का वृक्ष: पद्मपंखुरी की धार से' कालिदास के जीवन के रचनात्मक संघर्ष को दिखाता है. इस उपन्यास को लिखने में उन्हें 10 साल का समय लगा था. वर्मा ने भाषा से कहा था, “किसी भी कृति को जब लिखना हम शुरु करते हैं तो यह पता नहीं होता कि इस पर कितना समय लगेगा. लेकिन काम करते रहने से एक दिन पता चलता है कि यह तो खत्म हो गया.”
उसी दौरा उन्होंने यह भी कहा था, “मैं तो मुगलकालीन नाटकों की श्रृंखला पर काम कर रहा था. लेकिन एक दिन भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की इमारत में मुझे दुर्वासा ऋषि मिल गए और समझाने लगे कि साहित्य में उनके ऊपर काम नहीं हुआ है. मैंने कहा कि मैं तो मुगलों के वैभव को जी रहा हूं, इस प्राचीन भारत पर क्यों काम करुं, लेकिन इन ऋषि-मुनियों के पास बड़ी दैवीय ताकत होती है जिसके चलते उन्होंने मुझसे कालिदास पर यह उपन्यास 'काटना शमी का वृक्ष : पद्मपंखुरी की धार से' लिखवा ही लिया.” हमारे दौर के इस बेहद सम्मानित कथाकार की अन्य चर्चित रचनाओं में 'अँधेरे से परे', 'मुझे चाँद चाहिए', 'बम्बई भित्तिलेख', 'दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता' जैसे उपन्यास; 'प्यार की बातें' और 'कितना सुंदर जोड़ा' जैसे कहानी संकलन; 'जहाँ बारिश न हो' जैसा व्यंग्य और 'तीन नाटक', 'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक', 'आठवाँ सर्ग', 'छोटे सैयद बड़े सैयद', 'एक दूनी एक', 'कैद-ए-हयात', 'द्रौपदी' व 'एडिथ डोल' जैसे चर्चित नाटक शामिल हैं. उन्होंने 'नींद क्यों रात भर नहीं आती' जैसी एकांकी भी लिखी है.