सूवाः स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र, भारत का उच्चायोग, सूवा और हिंदी पत्रिका प्रवासी संसार के संयुक्त तत्वावधान में एक अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस वेब संगोष्ठी का विषय था 'गिरमिटिया संसारः भारतीय संस्कृति का विस्तार- फीजी के विशेष संदर्भ में. इस संगोष्ठी में भारत और फीजी के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड जैसे अन्य प्रशांत देशों के कई विद्वानों ने भाग लिया. मुख्य अतिथि थे भारत में फिजी के उच्चायुक्त महामहिम योगेश पुंजा. फीजी में भारत की उच्चायुक्त पद्मजा ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की. प्रवासी संसार के संपादक राकेश पांडेय ने इस संगोष्ठी का संचालन किया. फीजी में भारतीय उच्चायोग के स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक संतोष कुमार मिश्र ने विद्वानों का स्वागत किया. संगोष्ठी के बीज वक्ता थे फीजी सरकार के पूर्व मंत्री, वरिष्ठ लेखक व गिरमिट और गाँधी साहित्य के विद्वान सतेंद्र नंदन, जो ऑस्ट्रेलिया के कैनबेरा से इस कार्यक्रम से जुड़े. न्यूजीलैंड से हिंदी शिक्षक एवं 'विश्व हिंदी सम्मान' से सम्मानित सुनीता नारायण, फिजी के भूतपूर्व सांसद, शिक्षाविद और लेखक डॉ ब्रिज लाल और फिजी आर्यसमाज के संरक्षक पंडित भुवन दत्त, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद् के निदेशक नारायण कुमार और वरिष्ठ लेखक-साहित्यकार विमलेश कांति वर्मा अन्य प्रमुख वक्ता थे.
वक्ताओं ने एक मत से भारत की सांस्कृतिक चेतना से जुड़े ग्रंथों की गिरमिटिया देशों में लोकप्रियता और वहां प्रचलित हिंदी भाषा के स्वरुप का उल्लेख करते हुए यह कहा कि तमाम बोलियों के बावजूद हमारा हिंदी से कोई भेद नहीं है. रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत गीता और विभिन्न तीज त्योहार पूरी ठसक से कायम हैं. बावजूद लगभग सभी की इस बात पर सहमति थी कि गिरमिटिया देशों में हिंदी और भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए एक निश्चित रणनीति बनाये जाने की आवश्यकता है. डेढ़ घंटे के लिए निर्धारित यह संगोष्ठी लगभग तीन घंटे चली, जिसमें विश्व भर से सैकड़ों की संख्या में जुड़े दर्शक, श्रोताओं के बीच फीजी में शिक्षा मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारी रमेश चंद, सूरीनाम में स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक शरद कुमार, प्रसिद्ध भारतीय नृत्यांगना बहनें नलिनी और कमलिनी, फीजी में हिंदी की शिक्षिका मनीषा रामरखा, भारतीय विदेश मंत्रालय में उप सचिव हिंदी हरिकेश मीणा, भारतीय उच्चायोग सूवा के सुकांता चरण साहू, सिंगापूर से हिंदी विद्वान संध्या सिंह, लोकगायिका विद्या विन्दु सिंह, लोकगायिका कुसुम वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार इंदु पाण्डेय, न्यूजीलैंड से रोहित कुमार हैप्पी, दिल्ली विश्वविद्यालय से गोपाल अरोड़ा व अनेक विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर व शोधार्थी आदि शामिल थे.