नई दिल्लीः 'आओ गुनगुना लें गीत' समूह के तत्वावधान में कोरोना के चलते एक ऑनलाइन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के नामचीन कवियों ने भाग लिया. कार्यक्रम के अध्यक्ष छन्दशिल्पी बृजेन्द्र हर्ष थे, तो मुख्य अतिथि निवेदिता चक्रवर्ती. सान्निध्य रहा डॉ सविता चड्ढा का, विशिष्ट अतिथि रहे डॉ जयप्रकाश मिश्र व युवा गीतकार सर्जन शीतल. स्वागताध्यक्ष की भूमिका वरिष्ठ गीतकार डॉ जयसिंह आर्य के जिम्मे थी. संचालक थे कवि संजय जैन. सम्मेलन की शुरुआत आराधना सिंह अनु द्वारा सरस्वती वन्दना से हुई. अध्यक्ष बृजेन्द्र हर्ष ने पढ़ा, “पावस रिमझिम की बूंदों में, पेड़ों के झूले कहां गये ? वो भटके-भूले कहां गये, वे लंगड़े-लूले कहां गये.” डॉ जयसिंह आर्य ने सुनाया, “नाच उठा मन मयूर यह यादों के नन्दन वन में, उसे युवा कर गयी कल्पना जिसे मिले थे बचपन में.” इसके बाद निवेदिता चक्रवर्ती ने सुनाया, “अब जो ये बरसा है, इसे बरसने दो, सावन की बदरी है ये इसे गरजने दो. मोहब्बत का कोई जिस्म नहीं होता, रूह से ये बंध रहा है, इसे बंधने दो.“
कवि सम्मेलन में डॉ सविता चड्ढा और डॉ जयप्रकाश मिश्र की कविताओं को भी तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सुना गया. युवा कवि सर्जन शीतल ने अपनी कविता यों पढ़ीं, “जब तुम डूबकर दो पल प्रणय कहानी को समझोगी, उस पल हृदय तुम्हारा पत्थर बन जायेगा एक वियोगी, बहुत रुलायेंगे तुमको जब झूठे सब अखबार, तुम्हें तब आऊंगा मैं याद.” संजय जैन ने प्रणय-स्मृति को अपनी कविता में यों उकेरा, “मेरे दिल में कड़कती हैं सनम वो बिजलियां अब तक, सुनाई दे रही है मुझको खनकती चूड़ियां अब तक, कभी आगोश में आयी सनम ख्वाबों में तू इक दिन, निगाहों में लचकती है बदन की टहनियां अब तक.” आराधना सिंह अनु ने संयोग श्रृंगार को प्रतीक रूप में यों व्यक्त किया. “इस तप्त धरा पर जब बादल कुछ घुमड़-घुमड़ कर आते हैं. शीतलता का अहसास लिए जीवन का राग सुनाते हैं.” इनके अतिरिक्त श्रीकृष्ण निर्मल, सरिता जैन, प्रीतम सिंह प्रीतम, बृजेश सैनी, राजकुमार गाईड, सन्तोष त्रिपाठी, पुष्पलता राठौड़ और डॉ पंकज वासिनी ने भी काव्यपाठ किया.