नई दिल्लीः विश्व पितृ दिवस के उपलक्ष्य में अनुगूँज साहित्यिक संस्था की संस्थापक कवयित्री निवेदिता चक्रवर्ती ने 'एक अनुपम पिता-पुत्री' शीर्षक से काव्य गोष्ठी का आयोजन किया. उन्होंने इस आयोजन में पिता तुल्य छः राष्ट्रीय कवियों को आमंत्रित किया और उन सब कवियों ने माता, पिता, बेटी पर कविता सुनाई. इस दौरान इतनी भावुक, मार्मिक और रिश्तों से जुड़ी संवेदनशील कविताओं का पाठ हुआ कि काव्य-गोष्ठी से जुड़े सभी श्रोताओं का हृदय द्रवित हो गया. इस काव्य गोष्ठी में डॉ कृष्ण कुमार बेदिल, सुरेश सपन, डॉ जय सिंह आर्य, रमेश रमन, अंबर खरबंदा और डॉ राम गोपाल भारतीय ने भाग लिया और सात सौ से भी अधिक दर्शकों ने इसे देखा. निवेदिता चक्रवर्ती ने इस अवसर पर अपने पिता स्वर्गीय माणिक घोषाल की कविताओं का पाठ करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी और याद किया. काव्य-गोष्ठी का आरंभ राम गोपाल भारतीय ने बेटी के लिए बहुत सुंदर गीत से किया, “रोज फोन पर सारे घर की खोज खबर लेती हो, अपनी भी तो कभी बताओ बिटिया तुम कैसी हो.” उन्होंने यह मुक्तक भी सुनाया, “जीवन में मां बाप हमारे पुण्य कर्म का संचय हैं, अम्मा गंगा मां जैसी है बापू एक हिमालय हैं.”
गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने बहुत सुंदर गीत गाया, “नासमझ ना समझ मुझको बाबुल मेरे, तेरी ख़ुशबू हूं हरसू बिखर जाऊंगी“. ग़ज़लकार डॉ कृष्ण कुमार बेदिल ने विधवा बेटी पर बहुत ही सुंदर और मार्मिक गीत प्रस्तुत किया और यह भावपूर्ण मुक्तक सुनाया,”किसी की लाडली बेटी जब आयी है बहू बन कर, सभी रिश्ते, सभी नाते, पुराने तोड़ आयी है. बहू क्या लायी है पीहर से, सबने ये तो पूछा था, किसी ने ये नहीं पूछा कि क्या-क्या छोड़ आयी है.” उर्दू शायर अंबर खरबंदा ने माता-पिता और बेटी पर बहुत मार्मिक रचनाएं प्रस्तुत कीं, जिनकी कुछ पंक्तियां यों थीं, “याद करके वो घड़ी अब भी लरज़ जाता है दिल, जिस घड़ी में आपसे छूटा था जीवन भर का साथ, चल दिये थे आप ये दुनिया-ए-फ़ानी छोड़ कर, और कहलाने लगे थे हम उसी दिन से अनाथ…” सुरेश सपन ने अपने पिता को कुछ ऐसे याद किया, “वह पात पात झरने पर भी वासंती पर्व मनाते थे, आंखों में आंसू होते थे पर फिर भी वे मुस्काते थे.” रमेश रमन ने जगतपिता शिव को यों याद किया, “साँसों के आरोह शिखर पर मंदिर बाबा अमरनाथ का“. निवेदिता चक्रवर्ती ने अपने पिता के लिए कविता पढ़ी और पिता की लिखी सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुत की, जिसका एक शेर है, “वह बहुत थक चुका है पत्थर तराशते हुए, वह भी चला जायेगा कुछ नए निशाँ करके“. ये कार्यक्रम बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ