रायबरेलीः पत्रकारिता दिवस हर साल आता है. जलसे भी होते हैं. कई बातें भी कही जाती हैं. पर इस साल कोरोना के चलते सब गड्डमड्ड हो गया. ऐसे विपरीत माहौल में हिंदी और कला- संस्कार को लेकर रायबरेली के पत्रकार व समाजसेवी गौरव अवस्थी की एक रिपोर्ट काफी उत्साहित करने वाली है. वह लिखते हैं, “जब समाज पाश्चात्य सभ्यता के संक्रमण, कोरोना ही नहीं, से गुजर रहा हो, ऐसे में कोई 11 साल की बच्ची अपने पथ प्रदर्शक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को दिन विशेष, हिंदी पत्रकारिता दिवस- 30 मई, पर ऐसे याद करे तो एक उम्मीद दिखती और बंधती है नई पीढ़ी से भी. रायबरेली, हां वही रायबरेली जहां पत्रकारिता के पितामह आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने जन्म लिया. हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया तो जाता है, उदंत मार्तंड नामक दैनिक समाचार पत्र के उद्भव के रूप में,  लेकिन इस दिवस को याद आते हैं आचार्य महावीर प्रसादवद्विवेदी, विष्णु राव पराड़कर, पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, पंडित विद्यानिवास मिश्र, धर्मवीर भारती, राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी आदि…इन्हीं पुरखों की छांव में पत्रकार पल रहे हैं पत्रकारिता पल्लवित हो रही है.
आज जब पूरा समाज संक्रमण के दौर में है, तो पत्रकार और पत्रकारिता कहां से अछूती रह सकती है. पूर्वजों को याद करके आगे बढ़ने वालों की जमात जरूर कम हुई है लेकिन 'बीज' यत्र तत्र बिखरे हुए ही हैं. आराध्या चौधरी उन्हीं बीजों में से अंकुरित होने वाली नए जमाने की वह पौध है, जो भरोसा देती है कि पूर्वजों के स्वभाव-संस्कार-समर्पण की पताका झुकी जरूर है पर मिटी नहीं. यह अपने देश की मिट्टी की महिमा ही है कि मिटकर भी मिटती नहीं. नन्हीं सी आराध्या ने अपने नन्हें हाथों से हिंदी पत्रकारिता दिवस पर सिर्फ 1 घंटे में आचार्य द्विवेदी का उपरोक्त फोटो तैयार कर यह भी साबित कर दिया कि नई पीढ़ी परंपराओं के साथ है. पूर्वजों का मान बढ़ाएगी ही घटाएगी नहीं. रायबरेली के लखनऊ पब्लिक स्कूल में कक्षा छह में पढ़ने वाली आराध्या की 'आराधना' जीवित रखेगी परंपराओं को और संस्कारों को भी.. ऐसी ही एक लौ आराध्या की एक पीढ़ी आगे निफ्ट रायबरेली और स्कूलों-कालेजों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं ने भी जला ही रखी है. इसलिए पुरानी पीढ़ी की ओर अग्रसर हम जैसे लोगों को आश्वस्त होना चाहिए कि पूर्वजों के दिए संस्कार न कभी मिटे हैं और ना मिट पाएंगे.