नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन ने अमिता परशुराम की पुस्तक 'इश्क़ लम्हें' का ऑनलाइन लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें संगीत क्षेत्र से अनूप जलोटा, पंकज उधास तथा हरिहरन के अलावा वाणी प्रकाशन के  कर्ताधर्ता अरुण माहेश्वरी ने भी शिरकत की. अमिता परशुराम की 'इश्क लम्हें' वाणी प्रकाशन की दास्ताँ कहते-कहते श्रृंखला की एक पुस्तक है. अमिता परशुराम ने इस मौके पर ऑनलाइन उपस्थित अतिथियों से सवाल किया कि उर्दू की शायरी तथा ग़ज़लों की लोकप्रियता जन-जन में है, सभी तबके के लोग उसे सुनना एवं पढ़ना पसन्द करते हैं, परन्तु हिंदी देवनागरी में उसकी उपलब्धता न होने के कारण, लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसके बारे में अन्य लोग क्या सोचते हैं?
इस पर पंकज उधास ने कहा कि यह मसला शुरू से ही था, परन्तु 1982-83 में इस समस्या पर काम किया गया तथा उर्दू के साथ-साथ हिंदी देवनागरी में भी ग़ज़लों का छपना शुरू हुआ. अरुण माहेश्वरी ने बताया कि कैसे कैफ़ी आज़मी, जॉन एलिया, निदा फ़ाज़ली और गुलज़ार जैसे प्रतिष्ठित शायरों की पुस्तकों को हिंदी देवनागरी में छाप कर वाणी प्रकाशन ने इस क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया. इस दौरान ग़ज़लों के साथ-साथ मौसिकी की अहमियत पर भी बात की गई. अनूप जलोटा ने ग़ज़ल गायकों को खूबसूरत रथ का घोड़ा बताया. चर्चा के दौरान महसूस किया गया कि गायिकी में नित नए परिवर्तनों के साथ शायर के अल्फाज़ों को महफूज़ रखना कितना आवश्यक है. हरिहरन ने अपनी नई शैली के गीतों के माध्यम से कुछ ग़ज़लें गायीं और समा बांध दिया. इस दौरान आजकल की फिल्मों में लुप्त होती ग़ज़ल गायिकी की भी चर्चा हुई.