द्विवेदी-युग के सुप्रसिद्ध रचनाकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की आज जयंती है. वह 27 मई, 1894 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ में पैदा हुए. वह उन साहित्यकारों में शुमार होते हैं जिन्होंने हिंदी के वर्तमान स्वरूप को गढ़ने में अहम भूमिका अदा की. हिंदी भाषा और संपादन पर उनकी पकड़ का अनुमान इस तरह भी लगा सकते हैं कि वर्ष 1920 में वह तब की प्रतिष्ठित पत्रिका सरस्वती के सहायक संपादक रूप में नियुक्त किए गई और 1921 में महज एक वर्ष के भीतर ही सरस्वती के प्रधान संपादक बना दिए गए. खास बात यह भी कि उन्होंने यह दायित्व पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी से संभाला था. सरस्वती अपने समय में हिंदी साहित्य की आमुख पत्रिका मानी जाती थी. साहित्य जगत में साहित्य वाचस्पति करार दिए गए पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का साहित्य में प्रवेश सर्वप्रथम कवि रूप में हुआ था. हालांकि एक कहानीकार, निबंधकार, कवि, समीक्षक और अनुवादक के रूप में भी उन्‍होंने अपूर्व ख्‍याति अर्जित की.

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के बारे में एक रोचक किस्सा काफी मशहूर है, वह यह कि चंद्रकांता संतति उपन्यास के प्रति विशेष आसक्ति के कारण एक बार वह स्कूल से भाग खड़े हुए. तत्पश्चात पकड़े जाने पर हेडमास्टर पंडित रविशंकर शुक्ल ने जमकर बेतों से इनकी पिटाई की. यह और बात है कि पंडित रविशंकर शुक्ल कालांतर में अविभाजित मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने और पदुमलाल पुन्‍नलाल बख्‍शी महान साहित्यकार. बख्‍शी जी ने उच्‍चकोटि का साहित्य लिखा. उनकी कृतियों में काव्‍य-संग्रह 'शतदल' और 'अश्रुदल'; कहानी-संग्रह 'झलामला' और 'अंजलि'; उपन्यास 'कथा-चक्र', 'भोला' और 'वे दिन'; आलोचना पुस्तकें 'विश्‍व-साहित्‍य', 'हिन्‍दी-साहित्‍य-विमर्श', 'हिन्‍दी-उपन्‍यास-साहित्‍य', 'प्रदीप', 'समस्या', 'समस्या और समाधान', पंच रात्र', 'नव रात्र', 'यदि मैं लिखता' त‍था 'हिन्‍दी-कहानी-साहित्‍य'; निबन्‍ध-संग्रह 'पंच-पात्र', 'प्रबन्‍ध-पारिजात', 'कुछ यात्री', 'कुछ बिखरे पन्‍ने' और 'पद्मवन'; नाटक 'अन्नपूर्णा का मंदिर', 'उन्मुक्ति का बंधन' आदि शामिल है. बख्शी जी ने 'बिखरे पन्ने' और 'मेरा देश' नामक साहित्यिक-सांस्कृतिक निबंध तो लिखा ही 'मेरी अपनी कथा', 'जिन्हें नहीं भूलूंगा' और 'अंतिम अध्याय' नामक आत्मकथा-संस्मरण भी लिखा.बख्शी जी ने और भी बहुत कुछ लिखा. वह जीवन पर्यंत हिंदी की सेवा करते रहे, पर अफसोस कि उनके कृतित्व को उस रूप में याद नहीं किया गया, जिस रूप में किया जाना चाहिए.