लखनऊः आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 156वीं जयंती के अवसर पर आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की ओर से ई-परिचर्चा आयोजित की गई. इस परिचर्चा में पत्रकार-लेखक अरविंद सिंह, कुसुम लता सिंह, आनंद स्वरूप श्रीवास्तव, प्रोफेसर एके शुक्ला, हेमेंद्र प्रताप सिंह तोमर, स्नेह लता तिवारी, संजीव कुमार, निधि द्विवेदी, अनुपम सिंह परिहार, डॉ संध्या सिंह, डॉक्टर रामनरेश, महेंद्र तिवारी, डॉक्टर संदीप सिंह, रजिता दुबे, शिवम सिंह, श्रीप्रसाद चौबे (जौनपुर) ने प्रतिभाग लिया. नेट कनेक्टिविटी ना होने से परिचर्चा में समालोचक डॉक्टर सूर्य प्रसाद दीक्षित शामिल न हो सके. यह परिचर्चा लगभग 2 घंटे चली. आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार शुक्ल ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया. समिति के वरिष्ठ सदस्य करुणा शंकर मिश्र एवं नीलेश मिश्र ने परिचर्चा के तकनीकी पक्ष का प्रबंधन किया. अध्यक्षीय उद्बोधन में अरविंद सिंह ने कहा कि आचार्य द्विवेदी हिंदी के पहले ऐसे साहित्यकार हैं जो तकनीक के भी जानकार थे. कोरोना संकटकाल में तकनीक पर आधारित इस परिचर्चा का अपना महत्त्व है. उन्होंने आचार्य द्विवेदी के समग्र व्यक्तित्व को समाज के सामने लाने के लिए अभी और अधिक काम की जरूरत जताई. उन्होंने कहा कि विश्व में हिंदी ने अपना स्थान अवश्य बनाया है, लेकिन आचार्य द्विवेदी के सपनों के अनुसार गुणवत्ता परक हिंदी की जरूरत है.
हेमेंद्र प्रताप सिंह तोमर ने कहा कि आज पत्रकारों को समाचार संकलन तो सिखाया जा रहा है, लेकिन भाषा पर पकड़ और संवेदनशीलता गायब होती जा रही है. इसका असर पत्रकारिता में साफ देखने में आ रहा है. मीडिया संस्थानों को चाहिए कि शब्दों के महत्त्व को समझें और अपने संस्थानों में कार्यरत पत्रकारों को पूर्वजों के इतिहास और संघर्ष से परिचित भी कराएं. प्रोफ़ेसर एके शुक्ला ने आचार्य द्विवेदी द्वारा भाषा के परिष्कार और साहित्य के सृजन में की गई तपस्या का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके द्वारा संपादित कृतियां कालजयी हो गईं. मैथिलीशरण गुप्त की साकेत उनमें से एक है. रजिता दुबे ने कहा कि समय की जरूरत है कि हम हिंदी को एक बार फिर से आचार्य द्विवेदी की मेहनत और संघर्ष के अनुकूल समर्थ भाषा बनाएं. महेंद्र तिवारी ने हिंदी के बिगड़ते स्वरूप पर चिंता जताते हुए हिंदी जीवियों से व्याकरण सम्मत हिंदी के प्रयोग और कम से कम दूसरी भाषाओं के शब्दों के उपयोग का आग्रह किया. इंजीनियरिंग के छात्र शिवम सिंह एवं प्रसाद चौबे ने कहा कि ऐसे साहित्य का सृजन हो जिसमें समाज को बदलने और सुधार करने की शक्ति हो. आचार्य पथ स्मारिका के संपादक आनंद स्वरूप श्रीवास्तव ने स्वागत करते हुए कहा कि आचार्य जी की स्मृतियों को सहेजने के लिए हिंदी समाज को आगे आना होगा.