नई दिल्लीः लॉकडाउन के दौरान महिला रचनाकार डिजिटल कुछ अधिक ही सक्रीय हैं. जिसे देखो वही लाइव है. शायद घर के कामों में हाथ बंटाने वाले का सुख बटोर रही हैं. पर इसी बीच कुछ गंभीर रचनाओं पर भी चर्चा हो ही जाती है. अभी सोमवार की ही बात है. दोपहर बाहर से आती चिड़ियों की चहचहाहट और घर में लैपटॉप पर पहाड़ी पृष्ठभूमि पर आधारित नमिता गोखले के उपन्यास 'राग पहाड़ी' पर, खुद उन्हें सुनना, एक मधुर अनुभव था. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की सह-संस्थापक नमिता गोखले ने राजकमल प्रकाशन के इंस्टाग्राम पेज से कलाकार वाणी त्रिपाठी टिक्कू के साथ बातचीत में कहा, “न केवल कुमाउं बल्कि पूरे विश्व में औरतें सक्षम और मजबूत हैं. लेकिन, समाज हमेशा उन्हें दबाने की कोशिश करता है. कुमाउंनी स्त्री मेरे लेखन में अक्सर प्रमुख किरदार होती हैं. कुमाउं मेरे भीतर है. मुझे गढ़ने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है.“
नमिता गोखले ने बातचीत में बताया कैसे वे, अपने लेखन के जरिये कुमाउं के इतिहास को पूरी दुनिया के सामने लाने का प्रयास करती हैं. लाइव कार्यक्रम में वाणी त्रिपाठी टिक्कू ने 'राग पहाड़ी' किताब से बहुत ही सुंदर पाठ प्रस्तुत किया. वाणी त्रिपाठी टिक्कू ने पहाड़ की याद में 'बेडू पाको बारामासा' भी गाकर सुनाया. इस लाइव चर्चा में मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपने उपन्यास और उससे जुड़ी घटनाओं पर बात करते हुए बताया कि उनके जीवन की घटनाओं ने उन्हें अपना पहला उपन्यास 'शिग़ाफ' लिखने के लिए प्रेरित किया. कश्मीर अपने आप में एक अधूरी कहानी है. इसी अधूरी कहानी की पृष्ठभूमि पर आधारित मनीषा कुलश्रेष्ठ का पहला उपन्यास 'शिगाफ़' कश्मीर के दृश्यों पर लिखा गया, जिसे राजकमल ने प्रकाशित किया.