नई दिल्लीः साहित्य अकादमी और ईरानी दूतावास के संयुक्त तत्त्वावधान में पिछले दिनों भारतीय -ईरानी लेखक सम्मिलन का आयोजन हुआ, जिसके उद्घाटन सत्र की विशिष्ट अतिथि लेखिका नासिरा शर्मा थीं. ईरान के सांस्कृतिक परामर्शदाता मोहम्मद अली रब्बानी ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की. साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अतिथियों का अंगवस्त्रम् से स्वागत किया. अपने स्वागत वक्तव्य में के. श्रीनिवासराव ने भारत और ईरान के सुदीर्घ सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित किया. फ़ारसी साहित्य की मर्मज्ञ नासिरा शर्मा ने कहा भारत के कई प्राचीन ग्रंथों का फारसी में अनुवाद उपलब्ध होने के कारण ही हम उन दुर्लभ ग्रंथों को पुनः प्राप्त कर सके. दोनों देशों की भाषाओं के संबंध का इससे पुख़्ता प्रमाण और क्या हो सकता है. फ़ारसी की बहुत सी पुस्तकों में भारत के समाज, वातावरण और संस्कृति का ज़िक्र हुआ है.
मोहम्मद अली रब्बानी ने भारत और ईरान के संबंध में कहा कि प्राचीन काल से आज तक जो दोनों देशों का मजबूत और मधुर संबंध बना हुआ है, उसके पीछे संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों, अदीबों और विद्वानों का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने कहा कि दोनों देशों के साहित्य को एक-दूसरे के और निकट आने की ज़रूरत है और यह काम अनुवाद के ज़रिये किया जा सकता है. इस मौके पर ईरान और भारत के कवियों का काव्य-पाठ हुआ, जिसमें अली रज़ा क़ज़वे, हादी सईदी कैसरी, ऐन-उल हसन, इराक़ रज़ा जै़दी और बलराम शुक्ल ने अपनी मूल तथा अनूदित रचनाएँ प्रस्तुत कीं. संवाद सत्र का विषय था ‘भारतीय-ईरानी सांस्कृतिक संबंध’, जिसमें अहमद अली हैदरी, राजेंद्र कुमार, रख़्शंदा जलील और हुसैनी पूर नीकनाम ने अपने सुचिंतित विचार व्यक्त किए. इस सत्र का संचालन एहसानुल्लाह शुक्रुल्लाही ने किया.