नई दिल्लीः साहित्य अकादेमी द्वारा द्वि-दिवसीय सिंधी युवा लेखक सम्मिलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता सिंधी परामर्श मंडल के संयोजक नामदेव ताराचंदाणी ने, बीज वक्तव्य सिंधी परामर्श मंडल के सदस्य वासदेव मोही ने दिया. आरंभिक वक्तव्य में प्रख्यात सिंधी साहित्यकार मोहन हिमथाणी ने कहा कि युवाओं को सिंधी में क्या लिखे और क्यों लिखें की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए. मोहिनी हिंगोराणी ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में विभाजन का ज़िक्र करते हुए कहा कि सीमा रेखाएं किसी भाषा की साहित्य और संस्कृति के फैलाव को सीमित नहीं कर सकतीं. उन्होंने युवाओं से लिखने से पहले खूब पढ़ने की सलाह देते हुए कहा कि उन्हें अपनी भाषा ही नहीं बल्कि दूसरी भाषाओं के अनुवाद को भी पढ़ना चाहिए. बीज वक्तव्य में वरिष्ठ सिंधी साहित्यकार वासुदेव मोही ने सिंधी भाषा पर आए वर्तमान का संकट का ज़िक्र करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को अपनी खुली सोच के साथ अपनी सृजनात्मक क्षमताओं का विकास करना चाहिए. आगे उन्होंने कहा कि कुदरत की हर शह में कहानी और कविताएं छुपी होती हैं.
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ साहित्यकार और सिंधी परामर्श मंडल के संयोजक ने युवाओं से कहा कि छपने की जल्दी से अच्छा है कि पहले वे वरिष्ठ साहित्यकारों को पढ़े और एक नयी दृष्टि के साथ सृजन के क्षेत्र में सक्रिय हों. उन्होंने अपने लिखे की समीक्षा खुद ही करने की अपील करते हुए कहा कि युवाओं को उनपर लिखी हुई समीक्षाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें अपने सृजनात्मक विकास में सहयोगी मानना चाहिए. कार्यक्रम के आरंभ में सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि सिंधी भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्राचीन भाषा है, जिसकी सभ्यता और संस्कृति बहुत ही व्यापक है. उन्होंने सिंधी भाषा के विकास के लिए साहित्य अकादेमी द्वारा किए जा रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी दी. सम्मिलन के अगले दो सत्रों में युवाओं ने राकेश शेवाणी एवं जयेश शर्मा की अध्यक्षता में क्रमशः कविता एव कहानी-पाठ प्रस्तुत किए, जिनमें निशा धनवाणी, जितेंद्र चैथाणी, दिव्या धनवाणी, मोनिका पंजवाणी एवं समीक्षा लच्छवाणी ने शिरकत की. कार्यक्रम का संचालन उपसचिव एन. सुरेश बाबू ने किया.