धर्मशालाः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा धर्मशाला में आयोजित पुस्तक मेले में 'व्यंग्य के गलियारे' नामक सत्र आयोजित किया. इस कार्यक्रम में विशिष्ठ अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ आलोक पुराणिक ने कहा आप सारा दिन टेलीविजन देखिए, आप अपने आप व्यंग्य लिखना सीख जाएंगे. अभिताभ बच्चन कितने विज्ञापनों में आते है, कभी लोन लेते दिखाई देंगे, तो कभी मंजन करते दिखाई देंगे. कितने व्यस्त है बॉस! आज एक ही समाचार बरसों से आ रहा है कि सीबीएसई में लड़कियों ने लड़कों से इस बार भी बाजी मारी. टेलीविजन हमें व्यंग्य के लिए विषय उपलब्ध कराने में सक्षम है. इस अवसर पर उन्होंने अपनी बहुचर्चित रचना का वाचन भी किया.
अध्यक्षता करते हुए व्यंग्ययात्रा के संपादक डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा कि व्यंग्य विवश्ताजन्य हथियार है. हमें व्यंग्य को चुस्त बनाना होगा. साथ ही ये भी ध्यान देना होगा कि व्यंग्य में कसावट लाना उतना ही आवश्यक है, कि कैसे हमें पाठकों को जोड़ें. व्यंग्य रचना तभी व्यंग्य होगी जब उसमें अनावश्यक विस्तार नहीं होगा. निश्चित रूप से व्यंग्य सुनना हमें केवल आनंद ही नहीं देता, बल्कि हमारे भीतर की विसंगतियों को उजागर भी करता है. व्यंग्य वो वाण है, जो द्रोपदी ने चलाया तो महाभारत हो गया. व्यंग्य की हंसी हास्य की हंसी से अलग होती है. यदि आप किसी रचना से बैचेनी ले कर जा रहे है तो वह रचना व्यंग्य हुई. इस मौके पर डॉ प्रेम जनमेजय ने अपनी व्यंग्य रचना 'चिंकारा की आजादी' का पाठ भी किया. कार्यक्रम की शुरुआत में न्यास के प्रतिनिधि के रूप में डॉ ललित किशोर मंडोरा ने व्यंग्य की आवश्यकता पर चर्चा की. युवा व्यंग्यकार राजीव त्रिगती के व्यंग्य से शुरू इस आयोजन में व्यंग्यकार गुरमीत बेदी, सुदर्शन वसिष्ठ, अशोक गौतम, आशुतोष गुलेरी आदि ने अपनी रचनाएं सुनाईं.