नई दिल्लीः वाणी प्रकाशन ने लेखक मोहनदास नैमिशराय की आत्मकथा 'रंग कितने संग मेरे' का लोकार्पण एवं परिचर्चा आयोजित की. पुस्तक पर डॉ. सिद्दार्थ ने कहा कि इसे हम एक पत्रकार की संस्मरणात्मक आत्मकथा कह सकते हैं. नैमिशराय के व्याकुल मन ने उन्हें कहीं टिकने नहीं दिया, इसलिए यह एक बेचैन मन की कथा है. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रो. और प्रसिद्ध कहानीकार अजय नावरिया ने कहा कि आत्मकथा लेखन बेहद जोखिम भरा है, लेकिन यह आत्मकथा व्यक्ति और समाज के तौर पर दलित साहित्य का एक प्रामाणिक दस्तावेज बन गई हैं. नैमिशराय को उन्होंने बोहेमियन लेखक की संज्ञा दी. विख्यात लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता कौशल पंवार ने कहा कि यह सिर्फ़ आत्मकथा नहीं, दलित आन्दोलन और उत्पीड़न का दस्तावेज़ है लेकिन इसमें महिला लेखन और आन्दोलन कहीं छूट गया है. सहभागिता कर रहे डॉ. रूपचंद गौतम ने कहा कि यह भाषा और सौन्दर्य की दृष्टि से अद्भुत कृति है. आलोचक अरुण कुमार ने नैमिशराय के साहित्यिक योगदान पर बात करते हुए कहा कि लेखक अपने समकालीन परिवेश के प्रति बेहद सजग है और यह आत्मकथा में उभरकर आया है.

 

शेखर पंवार ने कहा कि अगर सभी रंगों को मिला दिया जाए तो काला रंग बनता है जो कि नैमिशराय के जीवन में स्थायी हो गया है. लेखकीय वक्तव्य रखते हुए नैमिशराय ने कहा कि लेखक को सच से नही भागना चाहिए, आत्मकथा झूठ नहीं, ईमानदार अभिव्यक्ति होती है. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात कवि और ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक लीलाधर मंडलोई ने कहा कि संघर्ष और स्वाभिमान दो शब्दों के इर्द गिर्द पूरी आत्मकथा के सूत्र पाए जाते हैं. कहीं कहीं पर लेखक लुत्फ़ लेने लगता है अगर रवानी में लिखता तो भावनात्मक कविता की बेहतरीन आत्मकथा होती. अतिथियों का स्वागत वाणी प्रकाशन की संपादक रश्मि भारद्वाज ने किया.
संचालन हेमलता यादव और धन्यवाद ज्ञापन वाणी प्रकाशन के निदेशक अरुण माहेश्वरी ने किया. माहेश्वरी ने कहा कि दलित साहित्य पर आधारित कार्यक्रम में जमीनी स्तर का काम और बातें बेहद संजीदगी से होती हैं.  अजय नावरिया, डॉ.सिद्दार्थ, कौशल पंवार, अरुण कुमार, रूपचंद गौतम, शेखर पंवार, सुधीर हिलसायन, रश्मि भारद्वाज, हेमलता यादव आदि लेखकों एवं शोधार्थियों के अलावा दीपा, टेकचंद, सतीश खनगवाल, अरुण, राजपाल, बृजेन्द्र गौतम आदि मौजूद रहे.