भोपालः स्थानीय राज्य संग्रहालय में हिंदी के जानेमाने कवि-लेखक गोविंद मिश्र की अध्यक्षता में स्पंदन संस्था की ओर से '10वें स्पंदन सम्मान समारोह' का आयोजन हुआ, जिसमें देश के दिग्गज रचनाकारों को उनकी साहित्य साधना के लिए 'स्पंदन सम्मान' से सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम में प्रख्यात कथाकार असगर वजाहत को स्पंदन कथा शिखर सम्मान, उदयन वाजपेयी को कृति सम्मान, प्रेम जनमेजय को साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान, आलोक चटर्जी को रंगकर्म के लिए कला सम्मान, महेश दर्पण को आलोचना कर्म के लिए आलोचना सम्मान, पंकज सुबीर को उपन्यास के लिए कृति सम्मान एवं थवई थियाम को युवा सम्मान से सम्मानित किया गया. इस अवसर पर असगर वजाहत ने कहा कि समाज को आगे ले जाने का कार्य साहित्य और कलाएं करती हैं, राजनीति नहीं. कलाएं समाज को परिपक्व करती हैं, लेकिन वर्तमान में संवाद की स्थिति बिगड़ गई है. बिना संवाद के फैसले कर दिए जाते हैं, इसलिए वे फैसले गलत होते हैं. उनका कहना था कि महानता के लिए उदारता बहुत जरूरी है. लेखन की बुनियादी बात यह है कि यह विशिष्ट हो, यदि लेखन विशिष्ट नहीं है तो वह लेखन नहीं है. उनका कहना था कि साहित्य के द्वारा ही शिक्षा का स्तर सुधारा जा सकता है. बदलते परिवेश में पर्यावरण को बचाना मुश्किल हो रहा है फिर साहित्य को बचाना तो और मुश्किल होने वाला है. उनका सुझाव था कि हमेशा ऐसी चीजें पढ़ें जो आपको पढ़ने में कठिन लगे, तभी तो आपकी बौद्धिक चेतना विकसित होगी.
कथाकार गोविंद मिश्र ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि 'सुकूं की शम्मा जलाओ, अंधेरा बहुत है.' स्पंदन संस्था प्रकाश फैलाने का बड़ा काम कर रही है. साहित्यकार अपने समय को कठिन समझ लेता है, लेकिन प्रतिकूल असर डालने वाली चीजें उसे कठिनतम बनाती हैं. स्वागत वक्तव्य एवं संयोजन डॉ. उर्मिला शिरीष ने किया. रचनाकारों का परिचय डॉ.आनंद कुमार सिंह व संचालन विनय उपाध्याय ने किया. इस के बाद कथा पाठ के सत्र में वरिष्ठ कथाकार मुकेश वर्मा की अध्यक्षता में राजेश जोशी, महेश कटारे, हरीश पाठक, सत्यनारायण पटेल ने कथापाठ किया।. राजेश जोशी ने 'मोबाइल झूठ' कहानी के माध्यम से कहा कि इस अद्भुत यंत्र के इजाद से झूठ बोलने के रास्ते तैयार हो गए हैं. अब झूठ भी नैतिकता से परे है. पहले हमारी भाषा में झूठ का बहुवचन नहीं था, नई तकनीक ने हमारी दुनिया से स्पेस छीन लिया. कथाकार हरीश पाठक ने अपनी कहानी 'पतंग' के माध्यम से मुंबई जैसे महानगर की जीवनशैली पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह मुंबई है. यहां किसी को कोई भी काम करने में लज्जा नहीं आती. यहां सबके तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और सबका काम एक दूसरे से ही चलता है. सत्यनारायण पटेल ने बदलते परिवेश को परिलक्षित करते हुए 'पर पाजेब ना भीगे' कहानी पढ़ी. महेश पटेल ने 'किबाड़' शीर्षक से कहानी पढ़ी. इस सत्र का संचालन सुमन सिंह ने किया.