शिक्षक नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने स्मृति सभा को संबोधित करते हुए कहा ” लोकसभा में विश्विद्यालय से संबंधित प्रारूप पेश होना था जिसे नामवर जी ने तैयार किया था। मैंने नामवर जी से मिलकर प्रारूप समझ लिया और जब उस पर बोलना शुरू किया तो मेरे तीन मिनट के संक्षिप्त वक्त को पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अपना समय देकर बढ़वा दिया।” प्रख्यात कवि आलोकधन्वा ने स्मृति सभा में कहा ” नामवर जी कभी ओछी हरकत करते नहीं देखा, क्षुद्रताएँ नहीं थी उनके पास। वे नई दुनिया का स्वप्न देखने वाले व्यक्ति थे। उनकी भाषा मे जो आत्मानुसान है वो ऐसे ही विचारों के प्रभाव के कारण हुआ। ”
बिहार प्रलेस के अध्यक्ष ब्रजकुमार पांडे ने स्मृति सभा में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा ” नामवर सिंह ग्रासरूट के पब्लिक इंटेलक्चुल थे। नामवर सिंह उत्तर भारत में आचार्यो की लंबी परंपरा के अंतिम आचार्य थे। “
चर्चित हिंदी आलोचक तरुण कुमार ने नामवर जी के संबंध में कहा ” आचार्य शुक्ल के बाद आलोचना को स्वायत्त कर्म के रूप में लिया। आलोचना उनके लिए वृहत्तर सांस्कृतिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना है। वे मानते थे कि रचनाकार की तरह यदि आलोचक के पास भी स्वप्न नहीं होगा वो अपना काम नहीं कर सकता। “
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन के मुताबिक ” नामवर जी कहा करते थे कि यदि वाम सांस्कृतिक संगठनों का एका न हुआ तो राजनीतिक एका भी न हो पाएगा। “
सत्येंद्र कुमार ने कहा ” मैं 2003 में गोदारगावां से गया लेकर आया था। गरीब लोग उनके पाँव छूते थे। नामवर जी ने बताया कि किसान मजदूर के पास रहोगे तो कभी निराश नहीं होगे। ”
स्मृति सभा को कवि अरुण कमल, केदारनाथ पांडे, सुमन्त, राणाप्रताप,शिवदयाल, श्रीराम तिवारी, अनिल विभाकर, शकील ससारामी आदि ने भी संबोधित किया। संचालन बिहार प्रलेस के महासचिव रवींद्र नाथ राय ने किया। स्मृति सभा में ‘प्राच्यप्रभा‘ के संपादक विजय कुमार सिंह, रमेश ऋतंभर, रानी श्रीवास्तव, रंगकर्मी जयप्रकाश, मृत्युंजय शर्मा, शहंशाह आलम, राजकिशोर राजन, विश्वजीत कुमार, अक्षय कुमार, अनिल कुमार राय, रेशमा, कृष्ण कुमार, संजीव श्रीवास्तव, श्रीराम तिवारी, सहित लेखक, रचनाकार आदि मौजूद थे।