नई दिल्लीः इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती एवं दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के संयुक्त तत्त्वावधान में संत रविदास जयंती पर राजधानी के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी सभागार में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के प्रारंभ में पुलवामा आतंकवादी हमले में शहीद जवानों के प्रति दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई. गायक जगदीश भारद्वाज ने देशभक्ति के गीत एवं संत रविदास के पदों का गायन किया. इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में विवेकानंद महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. मनोज दहिया शामिल हुए. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कार्ल मार्क्स से काफी पहले संत रविदास की वाणी में समाजवाद की अवधारणा मिलती है.  रविदासजी ने कहा था, 'ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न.' दहिया ने कहा कि संत रविदास ने जाति आधारित नहीं, गुण आधारित सम्मान को प्रतिष्ठित किया. उन्होंने कहा कि संत रविदास का मानना था कि स्वराज जरूरी है और गुलामी मृत्यु के समान है, और यही विचार आगे चलकर आजादी के आंदोलन में गूंजा.
स्वागत भाषण करते हुए दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ ने कहा कि देश की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए आज संत रविदास के विचारों की प्रासंगिकता बढ़ गई है, क्योंकि वे सबको जोड़ने की बात करते थे. बीज कथ्य प्रस्तुत करते हुए इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के संरक्षक मुन्नालाल जैन ने कहा कि हमें संत रविदास के पदों से सामाजिक एकता को प्रखर करने की प्रेरणा मिलती है. विशिष्ट अतिथि के तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रांत प्रमुख उत्तम ने कहा कि समाज में समरसता लाने के लिए संत रविदास के पदों को आत्मसात करने एवं उन पर गहन शोध करने की आवश्यकता है. दूसरे विशिष्ट अतिथि के रूप में दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के सदस्य गौरीशंकर भारद्वाज ने शिरकत की. उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्रों में समानता की बात कही गई है, लेकिन अंग्रेजों ने विकृत अनुवाद कर समाज में संभ्रम उत्पन्न कर दिया. हमें संत रविदास के विचारों को अपनाना होगा. कार्यक्रम का संचालन ज्योति ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के महामंत्री मनोज शर्मा ने किया. कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगीत एवं राष्ट्रगान से हुआ. इस कार्यक्रम में इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के सचिव संजीव सिन्हा सहित बड़ी संख्या में साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों एवं साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति रही.