अरुण कमल हमारे दौर के बेहद प्रतिष्ठित कवि हैं. अरुण कमल ने अपनी कविताओं में वर्तमान समय के कठिन अनुभवों को प्रामाणिकता के साथ व्यक्त किया है. उनका जन्म 15 फरवरी, 1954 को बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में हुआ. इनके अध्ययन–अध्यापन की भाषा अंग्रेजी रही, पर वह मूलतः हिन्दी के रचनाकार, कवि, अनुवादक के रूप में चर्चित हुए. उनकी दर्जनों प्रकाशित पुस्तकों में कविता संकलन ‘अपनी केवल धार‘, ‘सबूत‘, ‘नये इलाके में‘, ‘पुतली में संसार‘ तथा ‘मैं वो शंख महाशंख‘ खासे चर्चित रहे तो आलोचना पुस्तक ‘कविता और समय‘ तथा ‘गोलमेज‘ को भी खासी सराहना मिली. उनकी साक्षात्कार की पुस्तक ‘कथोपकथन‘, अंग्रेजी में समकालीन भारतीय कविता के अनुवाद की पुस्तक ‘वायसेज़‘, एक वियतनामी कवि की कविताओं तथा टिप्पणियों की अनुवाद–पुस्तिका और मायकोव्स्की की आत्मकथा के अनुवाद को खासी प्रसिद्धि मिली.
अंग्रेजी के अध्यापक रहे अरुण कमल ने मूलतः कवि के रूप में अपनी पहचान बनाई है. उनकी कविताओं में वह लय है, जो पाठक को एक अलग आयाम पर ले जाता है. उनकी चर्चित प्रकाशित रचनाओं में अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में, पुतली में संसार और मैं वो शंख महाशंख शामिल है. उनके रचनाकर्म में अनेक देशी–विदेशी कवियों की कविताओं के अनुवाद के साथ समकालीन कवियों पर निबन्धों की एक पुस्तक ‘दुःखी चेहरों का श्रृंगार‘ शामिल है. उनकी कई कविताएं और कविता संकलन अनेक देशी–विदेशी भाषाओं अनूदित और प्रकाशित हो चुके हैं और यह क्रम जारी है. अरुण कमल को कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड, श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, शमशेर सम्मान और ‘नये इलाके में‘ पुस्तक के लिए 1998 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है. उन्होंने डॉ. नामवर सिंह के प्रधान सम्पादकत्व में आलोचना का सम्पादन भी किया. बावजूद इतनी उपलब्धियों के वह आज भी बेहद सहज हैं. अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि कवि होकर जीना नहीं जीने के बराबर है. कवि को आम आदमी की तरह जीना चाहिए, भद्र व्यक्ति की तरह नहीं. अभी हाल ही में वाणी प्रकाशन से उऩका नया कविता संग्रह ‘योगफल‘ प्रकाशित हुआ है।