हिंदी, भोजपुरी-मैथिली, तीनों भाषाओं पर समान रूप से कलम चलाने वाले परिचय दास हिंदी, भोजपुरी-मैथिली अकादमी (दिल्ली) के पूर्व सचिव भी रह चुके हैं। ये अब तक 30 से भी अधिक किताबें लिख चुके हैं। परिचय दास को मुख्य रूप से निबंधकार माना जाता है। समकालीन भारतीय कविता एवं समकालीन भारतीय आलोचना पर इन्होंने गंभीर कार्य किए हैं। भोजपुरी की समकालीन कविता को भी इन्होंने नई दृष्टि दी है। कविता, गद्य लेखन, आलेख, पेंटिंग, रेखाचित्रों पर भी वे समान अधिकार रखते हैं। जागरण हिंदी के लिए स्मिता ने उनसे खास बातचीत की। 

कविता, गद्य लेखन व आलेख तीनों  विधाओं को एक साथ लेकर किस तरह चलते हैं?
मैं मानता हूं कि तीनों विधाओं में अंतर होने के बावजूद बहुत अधिक समानता है। गद्य को कवियों की कसौटी कहा गया है। इसके लालित्य को नए सिरे से मैंने रचने की कोशिश की है। कविता की संवेदनशीलता मेरे निबंधों में आपको जरूर मिलेगी। मैंने निबंध में समकालीन दृष्टि व रुचिबोध तथा परंपरा का समावेश किया है।  समकालीन भारतीय आलोचना व साहित्य पर मेरी वृहत्तर दृष्टि है। प्रसिद्ध उडिय़ा साहित्यकार सीताकांत महापात्र पर नई समझ के साथ मैंने आलोचना लिखी तथा उसे संपादित भी किया। 

इन दिनों आप क्या लिख रहे हैं?

विजयदेव नारायण साही, शंकर देव, ब्रजबुलि साहित्य, भारतीय कविता, भारतीय आलोचना पर कार्य चल रहे हैं, जो शीघ्र ही पाठकों के सम्मुख होंगे। कविता को नई दृष्टि देते हुए दस से अधिक मेरी कविता पुस्तकें तैयार हो रही हैं, जो नए समय को नए सिरे से चिह्नित करेंगी। ये कविता पुस्तकें वृहदाकार होंगी तथा इनका कैनवास भी विस्तृत होगा। दो महाकाव्यात्मक उपन्यास  गांव की पृष्ठभूमि पर आ रहे हैं। डायरी, संस्मरण, रिपोर्ताज तथा रेखाचित्र भी आ रहे हैं।


पिछले 50 वर्षों में भोजपुरी कविता में कितना बदलाव आया है?

जैसा कि साहित्य-रचना के विकास-क्रम में होता है, प्रारंभ में भोजपुरी कविता में लोक कंठ की प्रमुखता थी, जो धीरे-धीरे अपने समय को प्रतिबिंबित करने लगी। आज गेय व छंद के साथ-साथ छंदमुक्त कविताएं लिखी जा रही हैं। नए-नए कवि सामने आ रहे हैं। उनको मैं प्रोत्साहित भी करता हूं।


समसामयिक मैथिली साहित्य के बारे में बताएं।
आज का मैथिली साहित्य भारत में बेहतर लिखे जा रहे साहित्य के बीच रखा जा सकता है। हर विधा में रचनाकार अपने को प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्हें प्रकाशित होने की सुविधा मिलनी चाहिए तथा वहां बेहतर गद्य-विमर्श भी जरूरी है।


परिचय दास नाम से लिखने की खास वजह?
मेरा मूल नाम रवींद्र नाथ श्रीवास्तव है। मैंने मूल नाम से ही भोजपुरी और हिंदी में लेखन की शुरुआत की। इलाहाबाद से इंटर की पढ़ाई के बाद दोबारा जब मैं इस शहर लौटा, तो मित्रों के कौतुक से परिचय दास नाम से लिखने लगा और उसी नाम से रचनाएं सभी जगह छपने भी लगीं। तभी से इस नाम ने अपना रूपाकार ग्रहण कर लिया।


आपने अलग-अलग तरह की किताबों व पत्रिकाओं का संपादन किया हैं। क्या लेखन के लिए संपादन में महारत हासिल करना जरूरी है?
बिल्कुल नहीं। दोनों दो चीजें हैं। लेखन में मेरी निजता है, जबकि संपादन में सबका श्रेष्ठ चयन करना होता है। संपादन में चयनधर्मी दृष्टि, संपर्क, तटस्थता, उदारता चाहिए। विश्व के अनेक श्रेष्ठ रचनाकार हुए हैं, जिन्होंने लिखा, लेकिन संपादन का कार्य नहीं किया, जबकि कइयों का इसमें अधिकार व रुचि है। कई ऐसे भी हुए, जिन्होंने संपादन में अपने को ऐसा घुला लिया कि उनका रचनाकार्य अलक्षित होता चला गया।

आपने  दलित एवं जनजाति साहित्य के लिए भी कार्य किया है।
मेरे डी लिट का विषय दलित साहित्य का समाजशास्त्र ही रहा है। मैंने इसमें नए सौंदर्यशास्त्र को देखने की कोशिश की है।  थारू जनजाति की सांस्कृतिक परंपरा पर मैेंने पुस्तक लिखी है, जो आज 23 वर्षों बाद भी संयोग से प्रकाशित नहीं हो पाई है। जनजातीय साहित्य व लोक मर्म को समकाल से देखने की प्रवृत्ति रही है मेरी।


हिंदी-भोजपुरी-मैथिली तीनों भाषाओं को एक साथ किस तरह साधते हैं?
इनमें एक समता है। भोजपुरी मेरी मातृभाषा है, हिंदी जीविका व संपर्क की भाषा है तथा मैथिली मौसी- भाषा है, जिनमें मैं अब भी प्रयत्न कर रहा हूं। रचने व अभिव्यक्ति के लिए मेरे पास पर्याप्त आधार भी है। हिंदी-भोजपुरी-मैथिली तीनों में साहित्य-रचना मेरे लिए गरिमा की बात है व होगी।


आप गायन, अभिनय व पेंटिंग भी करते हैं?
हां, तीनों मेरे लिए सृजन के समान हैं। मैं लोकगीत गाता हूं, बचपन में नौटंकी में वर्षों अभिनय किया है, जिसके गवाह मेरे उत्तरप्रदेश के मऊ जिले के देवलास गांव के लोग हैं। पेंटिंग मैं  अमूर्त ही ज्यादातर बनाता हूं। उसमें मुझे लयात्मकता ज्यादा मिलती है।