जयपुर: समानांतर लिटरेचर फेस्टिवल के भीष्म साहनी मंच पर "मृणाल सेन और समानांतर सिनेमा" पर बातचीत हुई जिसमें कथाकार जीतेन्द्र भाटिया व पत्अरकार जीत राय शामिल हुए। सत्र का संचालन किया अविनाश त्रिपाठी ने। अविनाश ने विषय प्रवेश में कहा " मृणाल सेन की फिल्मों में कलकत्ता दिखता है 1965 में पहली फ़िल्म ' रात भोरे 'बनाई हिंदी फिल्म ' भुवन शोम' को काफी तारीफ मिली और उसे कई पुरस्कार मिले। जब सिनेमा का उद्देश्य मनोरंजन के आस पास घूम रहा था उस वक्त इटली में लगा कि सिनेमा समाज को बदल भी सकता है। सिनेमा में तमाम कलाएं एक साथ जुड़ी होती है। "
जीतेन्द्र भाटिया ने विषय पर टिप्पणी करते हुए कहा " मृणाल सेन अपनी सबसे खराब फ़िल्म 'रात भोरे' को कहा करते थे और कहते थे कि ये 'वीभत्स फ़िल्म' है जब मैंने उनसे पूछा कि आपकी सबसे अच्छी फिल्म कौन है वे कहते 'वो आने वाली है'। उनकी फिल्मों में शहर किरदार के रूप में आता है । 'कलकत्ता-71' तो शहर पर ही है। मृणाल सेन साहित्य व सिनेमा के संबंध को जरूरी मानते थे।"
अजीत राय ने मृणाल सेन पर विचार प्रकट करते हुए कहा " समानांतर सिनेमा की शुरुआत भुवन शोम से मानी जाती है लेकिन अब उसका प्रारम्भ 'तीसरी कसम' से माना जाने लगा है। ये 1966 की फ़िल्म है। लेकिन 1946 में 'नीचा नगर' जो गोर्की के 'लोअर डेप्थ 'पर आधारित था। विश्व सिनेमा में कोई भी महान सिनेमा देखें उसमें शहर ही किरदार होता था। "