अर्चना बिहार के समकालीन कला परिदृश्य में प्रमुख नाम है।पारिवारिक व सामाजिक स्तर पर काफी संघर्ष के बाद अर्चना ने एक मुकाम हासिल किया है। कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त अर्चना ने जागरणहिंदी के साथ अपने अनुभव साझा किए।
जब मैं कला की दुनिया में आई उस समय महिलाएं कम होती थीं, मैं अपने क्लास में अकेली लड़की थीं जिस कारण बहुत परेशानी होती थी । परिवार में भी कला का कम और पढ़ने लिखने का पारम्परिक माहौल अधिक था जिसके कारण दिक़्क़तें हुईं। पिता जी के साथ ही मां के खुले विचारों के कारण ही मैं यहां तक पहुंच पाई।
आर्ट कालेज में जब सेकेंड ईयर में थी तभी जहांगीर आर्ट गैलरी, मुंबई में मेरी पहली प्रदर्शनी हुई थी। दिल्ली , भोपाल, लखनऊ और भुवनेश्वर जैसे अनेकों शहरों में मेरी प्रदर्शनी लगी। जब मैं कला महाबिद्यालय के पहले साल में थीं तो जलरंग कंपीटिशन में गोल्ड मेडल राज्यपाल द्वारा मिला।
मेरे काम की प्रेरणा सबसे पहले मेरे पिता से मिली जिन्होंने मुझे ये सिखाया कि जिस भी विधा में रहो उसमें अव्वल रहो। पीछे रहने वाले को कोई नहीं पूछता। दूसरी प्रेरणा पुष्पलता मेहता जी से मिली जो बांकीपुर गर्ल्स हाई स्कूल में मेरी पहली कला गुरु थी। तीसरी प्रेरणाश्रोत कुमुद शर्मा रही हैं। कुमुद शर्मा के नाम पर मुझे एक सम्मान भी मिला है। इसके अलावा मुझे अपने पति शैलेन्द्र , जो खुद वरिष्ठ छायाकार हैं, से भी प्रेरणा मिलती रही है।
मैं जब कला सृजन करती हूं तो पहले अपने आस-पास के माहौल के अनुरूप विषय का चुनाव करती हूं और बाद में उसी को ध्यान में रखते हुए रंगों का संयोजन होता है। हम जब रंग लगाते हैं तो अपनी सूझ बूझ को प्राथमिकता देते हैं और उसी से कलाकार की परिपक्वता दिखती है ।वही कला के बाजार में खड़ा होने का आधार मुहैया कराता है।
महिलाओं को समाज में पिछड़ा समझने की सोच अब भी कायम है। ज्पुयादातर पुरुषों का मानना है महिलाएं घर के कामों में अधिक समय बिताती हैं, इसलिए अपने प्रोफेशन पर कम ध्यान देती हैं। पर ऐसा नहीं है। हम महिलायें दोनो जगह संघर्ष करतीं हैं। अब समाज की सोच बदलने भी लगी है, इसी से समाज बेहतर भी होगा और हम महिलाओं को आगे बढ़ने का मौक़ा भी मिलेगा।
जब एक कलाकार अपनी कला का सृजन करता हैं तो वह भावनात्मक रूप से उससे जुड़ जाता. उसको उस समय जो अच्छा लगता है उसी विषय को चुनता है।जब एक कलाकार किसी सबजेक्ट से प्रभावित होता है तो उसे कैनवास पर उतारने कीं कोशिश करता है।एक हीं विषय को अलग अलग कलाकार विभिन्न तरीक़े से बनाता है जिससे उनकी रचनात्मकता सामने आती है, सोच उद्घाटित होती है।
(अनीश अंकुर से बातचीत पर आधारित)