आज दो अक्तूबर है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन. वह गुजरात के पोरबंदर में पैदा हुए और प्राथमिक शिक्षा गुजराती में पाई. उच्च शिक्षा के लिए वह लंदन गए और अंग्रेजी माध्यम से बैरिस्टरी की डिग्री हासिल की. ऐसे में हिंदी से उन्हें भागना चाहिए था, पर उनमें हिंदी के प्रति अगाध प्रेम था. इस कदर की आजादी के फौरन बाद बीबीसी के संवाददाता ने जब उनका साक्षात्कार लिया तो उनका वाक्य था, 'पूरी दुनिया से कह दो गांधी अंग्रेजी भूल गया'. गुजरातीभाषी गांधीजी का हिंदी को लेकर योगदान अतुलनीय है. कहते हैं दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद जब वह देशाटन कर रहे थे, तभी उन्हें हिंदी का महत्त्व समझ आ गया था. उन्होंने पाया कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जो पूरे देश को जोड़ सकती है. फिर जब उनका पहला आंदोलन चंपारण से शुरू हुआ, तो उन्हें सबसे बड़ी दिक्कत भाषा को लेकर आई. इस मामले में स्थानीय लोगों ने उनकी मदद की, फिर गांधीजी ने खुद बहुत जतन से हिंदी सीखी…और एक समय ऐसा आया कि उन्होंने पूरे राष्ट्रीय आंदोलन को हिंदी से जोड़ दिया. उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की हिमायत की.
हिंदी के लेखकों-कवियों के साथ भी गांधीजी के रिश्ते बहुत आत्मीय थे. गांधीजी ने एक बार कहा था कि हिंदी में कोई टैगोर नहीं है, तो महाकवि निराला भड़क गए. उन्होंने गांधीजी से प्रतिवाद किया. गांधीजी ने अपनी भूल स्वीकार की. इसी तरह पांडेय बेचन शर्मा उग्र की किताब चाकलेट को जब बनारसी दास चतुर्वेदी ने अश्लील और घासलेटी साहित्य कहा, तो मामला गांधीजी तक पहुंचा. गांधीजी ने किताब पढ़ी और उग्रजी को उस आरोप से बरी करते हुए न केवल उसे समाज के हित में बताया बल्कि हरिजन में लेख भी लिखा. 1 सितंबर, 1921 को यंग इंडिया में प्रकाशित अपने एक लेख में गांधी जी ने लिखा, “अगर मेरे पास एक निरंकुश शासक की सत्ता हो, तो मैं विदेशी माध्यम के द्वारा हमारे लड़कों और लड़कियों की पढ़ाई आज ही रोक दूं और तमाम शिक्षकों और अध्यापकों से कह दूं कि अगर बर्खास्त न होना है तो इसे फौरन ही बदलें. मैं पाठ्यपुस्तकें तैयार होने की प्रतीक्षा नहीं करूंगा. वे इस परिवर्तन के बाद तैयार हो जाएंगीं. यह ऐसी बुराई है, जिसका इलाज एकदम हो जाना चाहिए.”
हिंदी के प्रति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कुछ चर्चित विचार…
- राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है.
- हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिंदी हृदय की भाषा है.
- हिंदुस्तान के लिए देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहां हो ही नहीं सकता.
- हिंदी भाषा के लिए मेरा प्रेम सब हिंदी प्रेमी जानते हैं.
- हिंदी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है.
- अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है, और हिंदी इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है.
- राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है.