वाराणसी: डाॅ शम्भुनाथ सिंह नवगीत के शिखर पुरूष हैं.उन्होंने ही सर्वप्रथम 1954-55 में इलाहाबाद में परिमल की गोष्ठी में नवगीत शब्द का प्रयोग किया था, जो आज एक विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है. किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि नवगीत के नाम पर आज कल काफी कुछ अधकचरी सामग्री परोसी जा रही हैै, जिसका नवगीतकारों को पुरजोर विरोध करना चाहिए. उक्त विचार प्रसिद्ध समीक्षक एवं नवगीतकार डाॅ. इन्द्रीवर ने डाॅ शम्भुनाथ सिंह की 27वीं पुण्यतिथि के अवसर पर अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में व्यक्त किये. उन्होंने कहा कि यह सुखद बात है कि काशी के साहित्यकारों-गीत कवियों को उप्र हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत कर गीत कविता का मान किया गया है. समारोह में उप्र हिंदी संस्थान द्वारा विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित लेखकों और कवियों क्रमशः प्रो० ओमप्रकाश सिंह, डाॅ. ब्रजेन्द्र द्विवेदी 'शैलेश' एवं अभिनव अरूण को मुख्य अतिथि ओम धीरज ने अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया. उन्होंने कहा कि कवियों और साहित्यकारों के सम्मान से किसी देश की दशा और दिशा तय होती है. साहित्य, कला, संस्कृति एवं सभ्यता की उन्नति के लिए डाॅ शम्भुनाथ सिंह जी द्वारा किया गया प्रयास अविस्मरणीय है. उन्होंने कहा कि डाॅ. शम्भुनाथ सिंह के समग्र साहित्य को 7 खंडों में सबके सामने लाने का डाॅ इन्दीवर एवं राजीव सिंह का प्रयास अत्यन्त स्तुत्य है.
कार्यक्रम में उप्र सरकार से सर्वसम्मति से यह माँग की गई कि तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री डाॅ महेन्द्रनाथ पाण्डेय द्वारा उद्घोषित 'डाॅ शम्भुनाथ सिंह सृजन पीठ', जिसकी स्थापना महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में होनी थी, को शीघ्रअतिशीघ्र अमली जामा पहनाया जाय. प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत डाॅ शम्भुनाथ सिंह फाउंडेशन के महासचिव राजीव सिंह ने किया. वरिष्ठ कवि नरोत्तम शिल्पी की अध्यक्षता एवं अजीत श्रीवास्तव ‘चपाचप बनारसी‘ के संचालन में आयोजित काव्यांजलि में कवियों ने काव्यांजलि प्रस्तुत की, जिनमें डाॅ विन्ध्याचल पाण्डेय 'सगुन', अशोक अज्ञान', डाॅ जयशंकर जय, डाॅ ब्रजेन्द्र द्विवेदी शैलेश और अभिनव अरूण ने अपनी-अपनी रचनाएं पढ़ीं. इस कार्यक्रम में हिमान्शु उपाध्याय, धूर्त बनारसी, देवेन्द्र सिंह, श्याम किशोर पाण्डेय, धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’, चन्द्रकान्त सिंह, सुखमंगल सिंह, बृजेश चन्द्र पाण्डेय तथा अशोक कुमार सिंह आदि मौजूद रहे.