नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने दिल्ली पुस्तक मेले के दौरान बाल साहित्य पर केंद्रित कार्यक्रम ‘बाल साहिती‘ का आयोजन किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि, आलोचक और बाल साहित्यकार दिविक रमेश ने की. उन्होंने कहा कि बच्चे हमारी सांस की तरह होते हैं, इसलिए हमें उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने कहना था कि बाल साहित्य हर उम्र के पाठकों के लिए है. हमें बच्चों को उपदेश देने की जगह अपना साझीदार बनाना होगा तभी वे हमारी बातें मान सकेंगे. बाल साहित्यकारों को यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि उनके साहित्य में समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो. यह भी बहुत ज़रूरी है कि आज के नए समय में नई सोच और नई सृजनात्मकता के साथ बाल साहित्य रचा जाए, जिसमें अब के बच्चे का मनोविज्ञान भी हो, उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छी स्थिति है कि ऐसा बाल साहित्य रचा भी जा रहा है और हमारी भारतीय भाषाओं के पास बाल साहित्य का ख़ज़ाना है, उन्होंने कहा कि विशेष अवसरों पर बाल साहित्य की पुस्तकें ‘दान‘ नहीं बल्कि ‘भेंट‘ की जानी चाहिए, इससे पठन-पाठन की संस्कृति का विकास हो सकता है.
कार्यक्रम में हरीश नवल, घमंडीलाल अग्रवाल, राकेश चक्र और ज़ेबुन्निशा जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों सहभागिता की. हरीश नवल ने अपने बचपन में बाल साहित्य की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि किताबों में बचपन को सुसंस्कृत करने का माद्दा होता है. बाल साहित्य ही हमें विवकेशील, नीतिवान और अंततः अच्छा नागरिक बनाता है.उन्होंने कहा कि (जीवन)‘मूल्य‘ ही हमें विचारों से धनवान बनाते हैं इसलिए अच्छी किताबों के मोल (दाम) को न देखकर उनसे मिलने वाले सुसंस्कारों को प्राथमिकता देनी चाहिए और अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को अच्छा साहित्य अवश्य उपलब्ध कराएं.
ज़ेबुन्निशा ने अपनी बाल कहानी ‘हरी मछली‘ का पाठ किया. यह कहानी मां और बेटी के बिछड़ने और मिलने की घटना पर केंद्रित थी, जिसमें कई नीतिगत बातें भी समाहित थीं. राकेश चक्र ने देशभक्ति पर आधारित अपनी कई बाल और किशोर कविताएं सस्वर प्रस्तुत कीं, जिनमें स्वच्छता और मच्छरदानी पर केंद्रित बाल कविताएं श्रोताओं को बहुत पसंद आईं. घमंडीलाल अग्रवाल ने ‘बादल क्यों बरसते हैं‘ शीर्षक से अपनी बाल कहानी का पाठ किया तथा ‘कान‘, ‘बात‘, ‘नाना-नानी‘ आदि पर केंद्रित कई कविताएं भी सुनाईं. उन्होंने बाल साहित्य की वर्तमान साहित्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह समय बाल साहित्य का स्वर्ण युग है. उन्होंने बाल साहित्य के विकास के लिए प्रकाशकों और अभिभावकों की भूमिका को महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इन्हें अपने नए दृष्टिकोणों के साथ बाल साहित्य को बच्चों तक पहुंचाना चाहिए.
कार्यक्रम का संचालन करते हुए साहित्य अकादमी में संपादक अनुपम तिवारी ने अकादमी की विभिन्न गतिविधियों का ज़िक्र करते हुए बाल साहित्य के प्रोत्साहन, प्रकाशन और संवर्धन के लिए किए जा रहे विभिन्न प्रयासों की विशेष रूप से चर्चा की और सभी के प्रति आभार प्रकट किया.