जमशेदपुर: “साहित्य समाज में परिवर्तन का सशक्त माध्यम है. लेकिन ओलचिकी लिपि से शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को अपेक्षित प्राथमिकता नहीं मिल रही है. रोजगार और अवसरों के अभाव के कारण युवा इस लिपि से विमुख हो रहे हैं.” यह बात एमपीसी कालेज बारीपदा की पूर्व प्राचार्या सह पद्मश्री डा दमयंती बेसरा ने संताली साहित्य सम्मेलन में कही. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में संताली माध्यम से अध्ययन को लेकर अनेक युवा भ्रमित हैं और यह समझने में असमर्थ हैं कि इस माध्यम से भी एक उज्ज्वल करियर संभव है. उन्होंने संताली माध्यम से पढ़ाई कर सफल हुए व्यक्तियों का आह्वान किया कि वे अपने अनुभवों से समाज के नवयुवकों को प्रेरित करें और उनका मार्गदर्शन करें. यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे नयी पीढ़ी के छात्रों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें. उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि पूरे भारत के साहित्यकार अपनी कृतियों को संताली भाषा की ओलचिकी लिपि में प्रकाशित करें. ऐसा करने से संताली भाषा में एकरूपता आएगी और समाज के अन्य लोग भी इस लिपि को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे. ओलचिकी लिपि की व्यापकता बढ़ने से यह गांव-घर तक अपनी पहचान बना सकेगी. उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, बल्कि उसकी दिशा का निर्धारक भी होता है. यदि संताली भाषा और ओलचिकी लिपि को संगठित रूप से प्रोत्साहित किया जाए, तो यह न केवल सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करेगी, बल्कि नयी पीढ़ी के लिए अवसरों के द्वार भी खोलेगी.

इसी कार्यक्रम में सिदो-कान्हू बिरसा यूनवर्सिटी पुरुलिया के संताली विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर श्रीपति टुडू ने कहा कि मातृभाषा संताली को समृद्ध और विकसित बनाने का दायित्व युवा पीढ़ी के कंधों पर है. उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के माध्यम बनें और अपनी भाषा तथा संस्कृति को सशक्त बनाने में योगदान दें. श्रीपति टुडू ने संताली भाषा की ओलचिकी लिपि के विकास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह तेजी से समृद्ध हो रही है और अपने साहित्यिक व सामाजिक आयामों में नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है. उन्होंने बताया कि संताली भाषा की शक्ति और व्यापकता को पहचानते हुए इसे और अधिक उपयोगी तथा प्रभावी बनाने की आवश्यकता है. गौरतलब है कि श्रीपति टुडू ने भारतीय संविधान का अनुवाद संताली भाषा की ओलचिकी लिपि में किया है. उनके इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें सम्मानित किया था. यह उनकी भाषा और संस्कृति के प्रति समर्पण का परिचायक है. श्रीपति टुडू का यह योगदान संताली भाषा के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में एक प्रेरणादायक उदाहरण है.