नई दिल्ली: कला, संस्कृति, संविधान, सिनेमा, संगीत, भाषा और कुंभ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मन की बात की 117वीं कड़ी के केंद्र में रहा. उन्होंने कहा कि 2025 में 26 जनवरी को हमारे संविधान को लागू हुए 75 वर्ष होने जा रहे हैं. हम सभी के लिए बहुत गौरव की बात है. हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें जो संविधान सौंपा है वो समय की हर कसौटी पर खरा उतरा है. संविधान हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है, हमारा मार्गदर्शक है. ये भारत का संविधान ही है जिसकी वजह से मैं आज यहां हूं, आपसे बात कर पा रहा हूं. इस साल 26 नवंबर को संविधान दिवस से एक साल तक चलने वाली कई गतिविधियां शुरू हुई हैं. 13 तारीख से प्रयागराज में हो रहे महाकुंभ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है. कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है. इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं. लाखों संत, हजारों परम्पराएं, सैकड़ों संप्रदाय, अनेकों अखाड़े, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है. कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है, कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा. इसलिए हमारा कुंभ एकता का महाकुंभ भी होता है. इस बार का महाकुंभ भी एकता के महाकुंभ के मंत्र को सशक्त करेगा. प्रधानमंत्री ने आह्वान किया कि जब हम कुंभ में शामिल हों, तो एकता के इस संकल्प को अपने साथ लेकर वापस आयें. हम समाज में विभाजन और विद्वेष के भाव को नष्ट करने का संकल्प भी लें. उन्होंने कविता के अंदाज में पढ़ा, अगर कम शब्दों में मुझे कहना है तो मैं कहूंगा… ‘महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश.
महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश.’ और अगर दूसरे तरीके से कहना है तो मैं कहूंगा…’गंगा की अविरल धारा, न बँटे समाज हमारा/ गंगा की अविरल धारा, न बँटे समाज हमारा.|
फिल्म जगत की शख्सियतों को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हम कई महान हस्तियों की 100वीं जयंती मना रहे हैं. इन विभूतियों ने भारतीय सिनेमा को विश्व-स्तर पर पहचान दिलाई. राज कपूर जी ने फिल्मों के माध्यम से दुनिया को भारत की साफ्ट पावर से परिचित कराया. रफ़ी साहब की आवाज में वो जादू था जो हर दिल को छू लेता था. उनकी आवाज अद्भुत थी. प्रधानमंत्री ने कहा कि भक्ति गीत हों या रोमांटिक सांग्स, दर्द भरे गाने हों, हर इमोशन को उन्होंने अपनी आवाज से जीवंत कर दिया. एक कलाकार के रूप में उनकी महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी युवा-पीढ़ी उनके गानों को उतनी ही शिद्दत से सुनती है – यही तो है टाइमलेस आर्ट की पहचान. प्रधानमंत्री ने अक्किनेनी नागेश्वर राव गारू को भी याद किया और कहा कि उन्होंने तेलुगु सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. उनकी फिल्मों ने भारतीय परंपराओं और मूल्यों को बखूबी प्रस्तुत किया. तपन सिन्हा की फिल्मों ने समाज को एक नई दृष्टि दी. उनकी फिल्मों में सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय एकता का संदेश रहता था. हमारी पूरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए इन हस्तियों का जीवन प्रेरणा जैसा है. भाषाओं का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने तमिल के बढ़ते प्रभाव का जिक्र किया और कहा कि ये हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है और हर हिन्दुस्तानी को इसका गर्व है. दुनियाभर के देशों में इसे सीखने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. पिछले महीने के आखिर में फ़िजी में भारत सरकार के सहयोग से तमिल शिक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ. बीते 80 वर्षों में यह पहला अवसर है, जब फ़िजी में तमिल के प्रशिक्षित शिक्षक इस भाषा को सिखा रहे हैं. मुझे ये जानकार अच्छा लगा कि आज फ़िजी के चात्र तमिल भाषा और संस्कृति को सीखने में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि ये बातें, ये घटनाएं, सिर्फ सफलता की कहानियाँ नहीं है. ये हमारी सांस्कृतिक विरासत की भी गाथाएं हैं. ये उदाहरण हमें गर्व से भर देते हैं. कला से आयुर्वेद तक और भाषा से लेकर संगीत तक, भारत में इतना कुछ है, जो दुनिया में छा रहा है.