नई दिल्ली: “चिकित्सा का पेशा आजीविका का साधन मात्र नहीं है. यह एक ऐसा पेशा है जो लोगों के दुखों को कम करने, बीमार लोगों का उपचार करने और समाज की भलाई में योगदान देने की पवित्र जिम्मेदारी देता है. चिकित्सकों, शोधकर्ताओं और शिक्षकों के रूप में, चिकित्सा से जुड़े पेशेवरों के ऊपर लोगों के स्वास्थ्य और जीवन को बेहतर बनाने तथा रक्षा करने की जिम्मेदारी है.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राजधानी के वर्धमान महावीर मेडिकल कालेज एवं सफदरजंग अस्पताल के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही.  राष्ट्रपति ने कहा कि चिकित्सकों के पास आने वाले मरीज केवल एक मेडिकल केस भर नहीं होते. बल्कि वे बीमारी से परेशान तथा आशंका और आशा के बीच फंसे इंसान हैं. उन्हें केवल  चिकित्सीय उपचार की ही नहीं, बल्कि उत्साहवर्धन की भी जरूरत होती है. इसलिए, एक डाक्टर की भूमिका केवल एक चिकित्सक की ही नहीं, बल्कि एक दयालु उपचारकर्ता की भी होनी चाहिए.

राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि चिकित्सा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग ने चिकित्सा और इंजीनियरिंग संस्थानों के बीच सहयोग को बेहद महत्वपूर्ण बना दिया है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एमआरएनए तकनीक, रोबोटिक्स और 3डी बायोप्रिंटिंग के प्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव लाने वाले हैं. वर्धमान महावीर मेडिकल कालेज और सफदरजंग अस्पताल अनुसंधान एवं नवाचार के लिए दिल्ली स्थित इंजीनियरिंग तथा प्रौद्योगिकी संस्थानों के साथ सहयोग कर सकते हैं. अंतःविषय ज्ञान साझा करना सबके हित में होगा. राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने ‘स्वस्थ भारत’ के निर्माण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. उन प्रयासों के सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं. हालांकि, निरंतर सफलता के लिए सभी हितधारकों का सहयोग आवश्यक है. कुशल और समर्पित डाक्टरों के बिना सरकार द्वारा बनाए गए स्वास्थ्य सेवा से जुड़े बुनियादी ढांचे का समुचित उपयोग नहीं किया जा सकता है. राष्ट्रपति ने कहा कि हमने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करने में युवा चिकित्सकों की अहम भूमिका होगी. शिक्षा, अनुसंधान और उद्यमिता के माध्यम से भारत को स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति में लाना उनका संकल्प होना चाहिए.