नई दिल्ली: “हमारे लोकाचार में, हमारे वेदों, पुराणों और उपनिषदों में, आप पाएंगे कि हमने प्रकृति की पूजा की है. वन्यजीवों के साथ हमारा वास्तविक रिश्ता रहा है.” उपराष्ट्रपति  जगदीप धनखड़ ने संसद भवन एनेक्सी में भारतीय वन सेवा के परिवीक्षार्थियों को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने परिवीक्षार्थियों को भारत की सभ्यतागत जड़ों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने कहा कि यदि संसद संवाद, बहस और चर्चा का केंद्र नहीं रहेगी-यदि लोगों के मुद्दों का समाधान नहीं किया जाएगा-तो संसद अप्रासंगिक हो जाएगी. इस तरह की गिरावट हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करेगी, इसलिए संसद को सावधानीपूर्वक पोषित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि हम राष्ट्रीय सुरक्षा या विकास के मुद्दों को राजनीतिक नजरिये से देखना शुरू करते हैं, तो हम संविधान की अपनी शपथ के प्रति सच्चे नहीं हैं. इसके लिए हम सभी को राष्ट्रवाद के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता रखने की आवश्यकता है. हमें हमेशा राष्ट्रीय हित को सबसे पहले रखना होगा. उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब भी विकास होता है और विकास की आवश्यकता की अनिवार्यता के कारण वन भूमि के हिस्से के उपयोग को बदलना पड़ता है, तो इसके लिए प्रतिपूरक वनरोपण होना चाहिए. लेकिन वह प्रतिपूरक वनरोपण प्रामाणिक होना चाहिए, वास्तविक होना चाहिए और यही आपको सुनिश्चित करना है.

उपराष्ट्रपति ने पर्यटन के राजदूतों के रूप में आईएफएस अधिकारियों की भूमिका पर भी जोर दिया और कहा, “आप इस देश में पर्यटन के प्राकृतिक, जैविक राजदूत हैं. लोग उन जगहों पर आते हैं, जो आपके अधिकार क्षेत्र में हैं. आप इसे और अधिक जानकारीपूर्ण बनाने के लिए आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं.” भारत की प्रचुर प्राकृतिक संपदा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्रकृति ने भारत को देश के सभी हिस्सों में भरपूर उपहार दिया है. लेकिन जागरूकता की कमी है. आपके प्रयास हमारे समृद्ध वन्यजीवन, वनस्पतियों और जीवों को प्रदर्शित करने में महत्वपूर्ण अंतर ला सकते हैं. धनखड़ ने कहा कि सर्वशक्तिमान ने इस ग्रह को केवल मानव जाति के लिए नहीं, बल्कि सभी जीवित प्राणियों के लिए बनाया है. इसलिए, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस तरह से कार्य करें जिससे सभी प्रकार के जीवों की सहानुभूतिपूर्ण देखभाल हो. इस अवसर पर राज्य सभा सचिवालय के महासचिव प्रमोद चंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति के सचिव सुनील कुमार गुप्ता के अलावा राजित पुन्हानी, जितेंद्र कुमार, जगमोहन शर्मा और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के कई अधिकारियों सहित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी से जुड़े गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे.