बनारस: “सनातन राष्ट्रधर्म और भारतीयता का प्रतिबिंब है. हमें सदैव याद रखना चाहिए कि हम भारतीय हैं और हमें भारत में अटूट विश्वास है! राष्ट्रधर्म सर्वोपरि है. किसी भी परिस्थिति में राष्ट्रहित को किसी और हित से हम नहीं दबा सकते.” वाराणसी में देव दीपावली समारोह के दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्र की आध्यात्मिक राजधानी से देश की महान परंपरा को याद किया. उन्होंने कहा कि काशी की पावन धरती को मेरा प्रणाम. अद्भुत महापर्व है ये. त्रिवेणी संगम है. सनातन परम्परा की तीन धाराओं का सुखद संयोग है. धनखड़ ने कहा कि अमृतकाल की सबसे बड़ी सीख है कि जिन लोगों ने देश के लिए त्याग किया हमारे उत्थान और आजादी में योगदान दिया,जिनको सदैव याद पहले करना चाहिए था, उनको याद किया गया और आज का दिवस पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अपना भारत बदल रहा है. अकल्पनीय तरीके से बदल रहा है. जो सोचा नहीं वो देश में संभव हो रहा है. प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में और उत्तर प्रदेश, मुख्यमंत्री योगी जी की तपस्या से जो बदलाव हो रहा है, दुनिया अचंभित है. जल हो, थल हो, आकाश हो, अंतरिक्ष हो, भारत की बुलंदियों को दुनिया सराह रही है और यहां देख कर मुझे लगता है कि हमारी जो सांस्कृतिक विरासत है, जो दुनिया में अनूठी है, 5000 साल से ज्यादा की है, उसका संरक्षण, उसका सर्जन, किस तरीके से हो रहा है. मैं भी कुछ वर्षों पहले यहां आया था और जो आज देख रहा हूं उसकी कल्पना करना ही मुश्किल था. हमारी सांस्कृतिक जड़ें बहुत जरूरी हैं, हमें जीवंत रखती हैं. भारत सनातन की भूमि है, काशी इसका केंद्र है. सनातन में विश्व शांति का संदेश है. सनातन सभी को समाहित करता है. सनातन विभाजनकारी ताकतों का विरोध करता है.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि सनातन हमको एक सीख देता है, दृढ़ रहने की, एक रहने की, मजबूत रहने की. और आज के समय में चुनौतियों को देखते हुए यह अत्यंत आवश्यक है कि सनातन की मूल भावना में हमारा विश्वास हो. हमें संकल्पित होना चाहिए कि भारत जो तीव्र गति से विकास यात्रा पर अग्रसर है और ऐसी विकास यात्रा जो आज दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति है, आने वाले एक दो वर्ष में दुनिया की तीसरी महाशक्ति होगी. स्वदेशी का भाव अपने में जागृत करें. उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वदेशी हमारी आजादी का विशेष अंग रहा है. यहां देखिए स्वदेशी दीप देश की मिट्टी, तेल और रुई का प्रतीक है. एक दीप से अनेक दीप. स्वदेशी भाव का जागरण और प्रसार. उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि स्वदेशी जागरण समृद्धि का मार्ग है. इसके नतीजे क्या होते हैं – आत्मनिर्भरता, विदेशी मुद्रा का बचाव और स्वदेशी रोज़गार का फैलाव. इसमें हर व्यक्ति योगदान कर सकता है. वैश्विक व्यापार का आधार हम क्या आयात करते हैं, उसे स्वदेशी को मूल मंत्र मंत्र मन में रखते हुए करना चाहिए. उपराष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक समरसता हमारे सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग रहा है. इस देश में कभी भी किसी ने आक्रमण की नहीं सोची है. आक्रमणकारियों को हमने समाहित किया है. हमारी संस्कृति हमें प्रेरणा देती है सभी को साथ लेकर चलें. भारत सामाजिक समरसता की नींव है. दुनिया को बड़ा संदेश देती है. मानवता का सबसे बड़ा धर्म क्या है? सामाजिक समरसता होनी चाहिए. हमारे बीच मनभेद हो सकते हैं, मतभेद भी हो सकते हैं, मनभेद कम से कम होने चाहिए, कोशिश करनी चाहिए न हों. पर जब राष्ट्र हित के मामले में हम कुछ लोगों को देखते हैं कि वो इसको सर्वोपरि नहीं रखते हैं, तो देश में चुनौती का वातावरण बनता है. उस वातावरण के प्रति सजग रहने के लिए हमारी सांस्कृतिक माला जो है, हम सबको उसी का हिस्सा रहना है. मैं आपसे आग्रह करूंगा और हमारी संस्कृति की ये बेमिसाल पूंजी है, सौहार्द पूर्ण संवाद रखिए. परिजनों से संपर्क रखे, जहां भी रहते हैं आस-पड़ोस का ध्यान रखें.