लखनऊ: गोमती पुस्तक महोत्सव के दौरान बाल फिल्म महोत्सव में देश-विदेश की अनेक अवार्ड प्राप्त फिल्में दिखाई जाएंगी. जिस फिल्म ने बच्चों सहित सबका ध्यान खिंचा वह थी, ‘मास्साब‘. यह फिल्म शिक्षा के महत्त्व पर आधारित है. इस फिल्म के माध्यम से संदेश दिया गया है कि शिक्षा समाज का केंद्र हैजो लोगों को साथ में बांधकर रखती है और एक शिक्षित समाज ही देश को असीमित ऊंचाइयों तक लेकर जा सकता है. फिल्म पर प्रतिक्रिया देते हुए अध्यापिका सुनीता सिंह ने कहा कि बच्चों को पढ़ाई के प्रति ईमानदार होना चाहिए और मन लगाकर पढ़ाई करनी चाहिए. इसी तरह लेखक गंज में बंकू पुस्तक पर चर्चा के माध्यम से पशुओं के प्रति घटती संवेदना पर बात हुई. लेखक अमित तिवारी ने अपने उपन्यास की रचना प्रक्रिया पर बातचीत करते हुए बताया कि बंकू केवल एक कुत्ते की कहानी नहीं हैबल्कि यह उन सभी पशुओं की कहानी है जोकि संवेदना के अधिकारी हैं. उन्होंने अपने जीवन संघर्षों के बारे में बात की और उभरते हुए लेखकों से कहा कि जिस लेखक के अंदर लिखने की ललक नहीं है वह सीखने पर भी लेखक नहीं बन सकता. उन्होंने सत्र में मौजूद कई दर्शकों के सवालों के जवाब भी दिये. उन्होंने कहा कि बंकू किताब पशु प्रेमियों के लिए तो है ही लेकिन ये किताब उनके लिए अधिक है जो पशु प्रेमी नहीं हैंए इसे पढ़ने से उनमें पशुओं के प्रति संवेदना जागृत होगी.

अगला सत्र एक समय लखनऊ की पहचान रहे मुंशी नवल किशोर प्रेस पर आधारित थाजिसका विषय था ‘मुंशी नवल किशोर: भारत के कैक्सटन एक किंवदंती‘. इस सत्र में तीन विशिष्ट वक्ताओं ने अपने विचार रखे. इनमें पद्म श्री डा रंजीत भार्गवनीता दुबेहिमांशु बाजपेयी शामिल थे. इस सत्र का संचालन चन्द्र प्रकाश ने किया. डा भार्गव ने कहा कि मुंशी नवल किशोर ने अपने प्रेस के माध्यम से लखनऊ में उर्दू को बढ़ावा दिया लेकिन इसके साथ अरबी और फारसी के अलावा मुख्यतः हिंदी और संस्कृत की कृतियां भी छापी. 1873 में नवल किशोर प्रकाशन ने धार्मिक पुस्तकों को छाप कर गांव-गांव तक पहुंचाकर अवध और भारत की संस्कृति का प्रसार-प्रचार किया. साथ ही देश में लोकतंत्रज्ञान-विज्ञान और राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया. इन क्षेत्रों में मुंशी नवल किशोर का योगदान अतुलनीय है. कार्यक्रम में उपस्थित मुंशी नवल किशार की प्रपौत्री और तेज कुमार प्रेस की कार्यकारी निदेशक नीता दुबे ने बताया कि वह नवल किशोर प्रेस भवन के गौरव को बहाल करने के लिए प्रयासरत हैं. एक नए अवतार में प्रिटिंग प्रेस की परिकल्पना की जा रही है. हिमांशु बाजपेयी ने कहा कि मुंशी नवल किशोर एक शानदार मुद्रक रहे और 10 साल से कम समय में उन्होंने नवल किशोर प्रेस को देश का सबसे बड़ा प्रिंटिंग प्रेस बनाकर खड़ा कर दिया. लखनऊ में व्यावसायिक प्रेस लाने का श्रेय मुंशी नवल किशोर को ही जाता है. लखनऊ को इसकी जुबां देने में नवल किशोर प्रेस का सबसे बड़ा हाथ है और आज जो शहर गंगा-जमुनी तहज़ीब से जाना जाता हैए उसके लिए सबसे ज्यादा शुक्रिया मुंशी नवल किशोर का है. लखनऊ की लाखनवीयत मुंशी जी की ही देन है. ‘सांस्कृतिक पहचान और अंग्रेजी भाषा‘ सत्र में  प्रोफेसर रजनीश अरोड़ा और रूपम सिंह ने अपने विचार रखे. लेखिका डा सुनीत मदान ने इस सत्र का संचालन किया. इंटीग्रल यूनिवर्सिटी ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में संगीतमय प्रस्तुतियां दीं.