लखनऊ: गोमती पुस्तक महोत्सव में शब्द संसार के मंच पर विद्यार्थियों को राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय के बारे में बताया गया. राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय या राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग की एक डिजिटल पहल है, जो सभी भौगोलिक क्षेत्रों में शैक्षणिक पाठ्यक्रम से परे गुणवत्ता वाली डिजिटल पुस्तकों की उपलब्धता की सुविधा प्रदान करती है. ये पुस्तकें विभिन्न भाषाओं और शैलियों में उपलब्ध हैं. इस दौरान आयोजित बाल फिल्म महोत्सव में विद्यार्थियों ने फिल्मों के प्रति काफी उत्साह दिखाया. ईरान, भारत, इटली की प्रख्यात बाल फिल्मों कासदरा (थरोली), नंबर 7, स्विंग, गिउलिया ई इल कैपोपोस्टो ने बच्चों को बाल मजदूरी को लेकर भावनात्मक स्तर पर प्रभावित किया. फिल्म महोत्सव में दिखाई गई मूक फिल्म ‘स्कूल बेल‘ ने बच्चों को काफी आकर्षित किया. महोत्सव में लेखक गंज के मंच पर तीन सत्रों का आयोजन हुआ. पहले सत्र में ‘मीडिया और समाज‘ विषय पर सुधीर मिश्र और डा रचना गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त किए. दोनों विशेषज्ञों ने अपनी पत्रकारिता और लेखकीय अनुभवों को साझा करते हुए समाज और मीडिया के संबंधों पर प्रकाश डाला. सुधीर मिश्रा ने कहा कि टेक्नोलाजी उपयोगी है, इसके चलते आजकल मीडिया में भारी बदलाव आया है, समाचार तक पाठक की पहुंच का समय कम हुआ है. लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं, जैसे आजकल रिपोर्टर फील्ड पर नहीं जाता, वह चाहता है कि बिना जाए रिपोर्टिंग कर दे. दूसरी बात प्रिंट मीडिया की बजाय डिजिटल मीडिया की विश्वसनीयता कम है. पाठक विविधता चाहता है और अब नागरिक पत्रकारिता का समय है. ऐसे में मीडिया को भी बदलाव की आवश्यकता है और सामाजिक विषयों पर ध्यान देने की जरूरत भी. रचना गुप्ता ने कहा कि एक समाचार पत्र के प्रकाशन की लागत उसके विक्रय मूल्य से कई गुना अधिक होती है. ऐसे में आप तक जो समाचार पत्र आ रहा है, उसे पढ़ना चाहिए. उन्होंने विद्यार्थियों को सलाह दी कि उन्हें संचार कौशल का भी विकास करना चाहिए.
‘स्क्रीन के लिए सम्मोहक कहानियां‘ सत्र में मनोज राजन त्रिपाठी और सुधीर मिश्र ने डिजिटल माध्यम के लिए लेखन संबंधी विचार व्यक्त किए. मनोज ने चर्चा के शुरुआत में ही बताया कि कहानियां नजरिए से बनती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कहानी बहुत छोटी और बहुत लंबी हो सकती है, ‘एक था राजा, एक थी रानी‘ कहानी का उदाहरण लेकर उन्होंने ये बात समझाई. उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी की जीवनी पर फिल्म बन रही है तो उसमें यह ध्यान रखना चाहिए की जिसके जीवन पर फिल्म बन रही है उनके जीवन से जुड़े तथ्यों में बदलाव न हो. उन्होंने दर्शकों को सचेत किया कि ऐसे में दर्शक और पाठक को तय करना चाहिए की कौन से तथ्य सही हैं और कौन से गलत. सुधीर ने अपनी चर्चा में कहा की आप रचनात्मक स्वतंत्रता ले सकते हैं लेकिन ध्यान रखें कि तथ्यों में उलटफेर न हो. इसके साथ ही उन्होंने कहा की फिल्मी कहानियों में आम इंसान से जुड़ाव होने की आवश्यकता है, तभी वो एक सफल कहानी बनेगी. अगले सत्र ‘कला और कविता के लेंस के माध्यम से: लखनऊ में एडवर्ड लीयर और टेनिसन की घेराबंदी‘ पर था, जिसमें शोधकर्ता, शिक्षक और लेखक अनिंद्यो राय ने लखनऊ के इतिहास पर बात की. इस सत्र का संचालन चन्द्रप्रकाश ने किया. सांस्कृतिक संध्या में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों ने मनमोहक प्रस्तुतियां दीं. पहली प्रस्तुति के अंतर्गत ‘अजगर‘ नामक नाटक का मंचन किया गया. इस नाटक के माध्यम से समाज की ज्वलंत समस्याओं को दर्शाया गया है. नाटक में विवेक सोनी, मानस बाजपेई, जिग्यांश कुमार सिंह, पलक यादव, प्रमुदित पांडेय, आयुषी मौर्या, साक्षी, अथर्व सहाय, गार्गी झखमोला ने प्रतिभाग किया. इसके बाद प्रगति कटियार, उन्नति गिरि, साक्षी, मैत्रेयी, दिव्यांशी, श्रेया शुक्ला, जाह्नवी और हरिप्रिया गौर द्वारा ‘महारास‘ किया गया. दोनों प्रस्तुतियों को दर्शकों ने काफी सराहा.