नई दिल्ली: “नए आपराधिक कानूनभारतीय न्याय संहिताभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को औपनिवेशिक विरासत से मुक्त कर दिया है. यह एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी परिवर्तन है और अब दंड विधान न्याय संहितान्याय विधान बन गया हैजो पीड़ितों के हितों की रक्षाअभियोजन को कुशलतापूर्वक चलाने और कई अन्य आवश्यक संपूर्ण परिवर्तनों के बीच सुधार ला रहा है.” भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की आम सभा की 70वीं वार्षिक बैठक में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि इस देश का लोकतांत्रिक ढांचा भारतीय संविधान की प्रस्तावनाभाग तीन में इसके मौलिक अधिकार और भाग चार में मौलिक कर्तव्योंसंविधान के कैपिटल ए में पर्याप्त रूप से परिलक्षित होता है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि सक्रिय लोक प्रशासन से अधिकार पनपते हैंदूरदर्शी नीतियों और अभिव्यक्तियों को वास्तविकता में बदलना चाहिए ताकि लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पूरी तरह से जागरूक किया जा सके. यह एक सतत प्रक्रिया हैइसे तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत है.

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि अधिकारों को सुनिश्चित करना सिर्फ इसके बारे में इरादा रखने से कहीं ज्यादा है. यह क्षमताओं और योग्यता का मामला है. दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है. हमें इसके साथ तालमेल रखना होगा और ऐसा ही हमारे लोक प्रशासन को भी करना होगा. उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारा लोक प्रशासन अगर इन मूल्यों को आत्मसात नहीं करता है तो वह राष्ट्रीय हित और भावना के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएगा. लोक प्रशासन में लोगों को हमेशा राष्ट्रवाद के मूल्योंएक विकसित और एकजुट भारत के विचार और बिना किसी डर या पक्षपात के सभी भारतीय नागरिकों की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए. धनखड़ ने कहा कि प्रौद्योगिकी को अपनाते समय हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इससे और अधिक विभाजन पैदा न हो. तेजी से आगे बढ़ती प्रौद्योगिकी समाज के सबसे कमजोर वर्ग को अलग-थलग कर सकती है. इसलिए हमारा दृष्टिकोण समावेशी होना चाहिएजो हमारी 5,000 साल पुरानी सभ्यता के मूल्यों की पहचान है और हमें इस समय अंत्योदय से प्रेरित होना चाहिएताकि यह सुनिश्चित हो सके कि तकनीकी प्रगति हमारी आबादी के सभी कोनों तक पहुंचे.