बेंगलुरु: “हमारे ऋषिसंत और शास्त्र दर्शनसभी के कल्याण एवं समावेशिता की बात करते हैं और यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम‘ और यहां तक कि हमारे जी20 के आदर्श वाक्य में समाहित है.” उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कर्नाटक के आदिचुंचनगिरी विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जो पृथ्वी पर हर किसी को यह मार्गदर्शन दे सकता है कि समावेशिता क्या है. निश्चित रूप से हमें उस चीज से सबक लेने की जरूरत नहीं है जिसे हम 5,000 से अधिक वर्षों से जी रहे हैं. यह दर्शन अकेले ही टिकाऊ है और वैश्विक शांति और सद्भाव बनाता है लेकिन कुछ लोगों की समावेशिता की एक अलग अवधारणा है जो समावेशिता की भावना को नष्ट कर देती है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि आरण्यक – आरण्यक का अर्थ है वनयह वेदों का तीसरा खंड हैलेकिन यहां यहां अंतर अलग है और अंतर यह है कि इसका अर्थ है वह रचना जहां मां प्रकृति की गोद में कुछ बेहतरीन दार्शनिक चर्चाएं हुई हैं. यह स्थान इसका उदाहरण है. पहाड़ियों की तलहटी में हरे-भरे परिदृश्य में एक संस्थान स्थापित करना वास्तव में दूरदर्शी कदम थाजो आधुनिक समय के शिक्षार्थियोंदार्शनिकों और साधकों के लिए एक आदर्श आरण्यक है. प्रतिभा के मनोनुकूल दोहन और चुने हुए कार्यों में ऊर्जा को मुक्त करने के लिए यह सचमुच एक आदर्श स्थान है.  उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे ऋषिसंत और शास्त्र दर्शनसभी के कल्याण एवं समावेशिता की बात करते हैं और यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम‘ और यहां तक कि हमारे जी20 के आदर्श वाक्य में समाहित है. हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जो पृथ्वी पर हर किसी को यह मार्गदर्शन दे सकता है कि समावेशिता क्या है. निश्चित रूप से हमें उस चीज से सबक लेने की जरूरत नहीं है जिसे हम 5,000 से अधिक वर्षों से जी रहे हैं. यह दर्शन अकेले ही टिकाऊ है और वैश्विक शांति और सद्भाव बनाता है लेकिन कुछ लोगों की समावेशिता की एक अलग अवधारणा है जो समावेशिता की भावना को नष्ट कर देती है

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि जब भी मैं ऐसे संस्थानों के बारे में सोचता हूं जो आधुनिक शिक्षा प्रदान करते हैं और फिर भी सांस्कृतिक मूल्यों को अपने केंद्र में रखते हैंतो स्वामीजी आप जैसे व्यक्ति और सज्जन व्यक्तिमहान द्रष्टा जिन्होंने 50 साल पहले इसे शुरू किया थाशीघ्र ही इतिहास और सभ्यता के ये महान पुरुष का ध्यान आ जाता है.
उन्होंने कहा कि संस्था हमारे सांस्कृतिक सार और आधुनिकता का सहज सम्मिश्रण है. यह संस्था इस बात का भी उदाहरण है कि कैसे हमारे मंदिर और मठ संस्कृति एवं सामाजिक मूल्यों को बनाए रखते हैं. ये महत्त्वपूर्ण केंद्र जरूरतमंदोंदिव्यांगोंकमजोर और हाशिए पर पड़े लोगों की सेवा के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं.  उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया भर में 26 शाखा मठों और श्री आदिचुंचना गिरी शिक्षा ट्रस्ट के तहत 500 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों के साथ-जिसमें दृष्टिबाधितश्रवणबाधित और मूक के लिए स्कूल शामिल हैं. हाशिए पर पड़े लोगों के लिए इस संस्था की सेवा अनुकरणीय है. वास्तव में यह सनातन धर्म के आलोचकों को करारा जवाब है.  उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि बड़े पैमाने पर ऐसी संस्थाएं निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा करती हैंहमें जमीन से जुड़े रहने की जरूरत हैक्योंकि कुछ लोग ऐसी गतिविधियों में संलग्न होना चाहते हैं जो समग्र होने से बहुत दूर हैं. निस्संदेह दानसहायता या इस तरह के हाथ थामने के लिए कोई शर्त नहीं होनी चाहिए. वास्तव मेंहमारी सभ्यतागत मान्यताएं हमें बताती हैं कि दान की कभी बात नहीं करनी चाहिएदान की कभी मांग नहीं करनी चाहिए. हमारे शास्त्रों को याद रखें: जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी. मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं. उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि मुझे यकीन हैमुझे इस अद्भुत संस्थान के छात्रों को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने की आवश्यकता नहीं है. आप छात्र इस बड़े बदलाव के केंद्र में होने के लिए एक अद्भुत संस्थान में हैं. मेरे युवा मित्रो! राष्ट्र को हमेशा हर चीज से ऊपर रखें. राष्ट्रवाद से हमेशा जुड़े रहें. इस पर कोई व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ नहीं आना चाहिए.