आगरा:  साहित्य निधि एवं ओपन कला मंच ने काव्य दीपोत्सव का आयोजन किया तो नगर का वातावरण साहित्यिक दीपराग से रोशन हुआ. यश भारती से पुरस्कृत कवि डा विष्णु सक्सेना की रचनाओं को सुनने के लिए श्रोता आखिरी  तक बैठे रहे. उन्होंने भी निराश नहीं किया. ‘एक शाम नारी सम्मान एवं सुरक्षा के नाम’ कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यादायिनी मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप जलाकर मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष डा मंजू भदोरिया, सुरेश चंद्र गर्ग, सुनील शर्मा ने किया. कार्यक्रम के सूत्रधार मोहित सक्सेना एवं कार्यक्रम संयोजक हीरेंद्र नरवार हृदय के नेतृत्व में कवि-सम्मेलन आगे बढ़ा. इस दौरान राष्ट्रीय स्तर के कवियों के साथ विभिन्न जिलों से आए कवियों ने अपने कविता पाठ से जमकर तालियां बटोरीं. कवि मोहित सक्सेना ने नारी शक्ति और सुरक्षा पर जब पढ़ा कि ‘नारी ममता की मूरत है तो रणचंडी की भाषा है, भारत की हर नारी भारत माता की परिभाषा है’, तो सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. .

डा विष्णु सक्सेना ने पढ़ा, ‘रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा, एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं’.‌ सतीश मधुप ने जहां ‘ये धरा अब राजधानी, बन गई शैतान की…’ पढ़कर वर्तमान समय पर चोट किया वहीं पवन आगरी ने पढ़ा, ‘जान की रक्षा स्वयं ही, कीजिए हे जानकी…’  दिनेश दिग्गज ने पढ़ा, ‘गूगल का जीपीएस रास्ते बताएगा, चलने के तरीके संस्कार से मिलेंगे..’ तो हास्य कवि लटूरी लट्ठ ने सुनाया, ‘मैंने जो भी चीज खरीदी, जालिम विकट जमाने से. नौकर ने भी लाकर दे दी, बहुत बड़े तहखाने से’. पदम गौतम ने ‘दीवाली पर जाओ मिलने अपने लोगों से, वर्षों पहले रूठे अपने, भाई से मिल लेना’, सुनाया तो विपिन शर्मा ने सुनाया, ‘प्रेम की जो कथा थी व्यथा बन गई, प्रीत में हम छले के छले रह गए’. अंत में डा विष्णु सक्सेना ने कहा कि यह सच है कि समय बदला है सोच बदली है लेकिन कवियों का कविता पाठ आज भी समाज को आइना दिखा रहा है. इस अवसर पर अजय शर्मा, शैलेंद्र नरवार, अनुज बंसल, विजेंद्र रायजादा, सुरेंद्र बंसल आदि उपस्थित रहे.