नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम शृंखला ‘कथा-संधि‘ में प्रख्यात कथाकार सच्चिदानंद जोशी के कथा पाठ का आयोजन किया. डा जोशी ने सर्वप्रथम अपनी कहानी ‘वन योगिनी‘ का पाठ किया. कहानी एक ऐसी लड़की पर केंद्रित थीजिसने आदिवासी परिवार से आने के बाद भी अपनी प्रतिभा के बल पर जिलाधिकारी का पद हासिल किया. लेकिन उसकी इस लक्ष्य तक पहुंचने के पीछे साक्षात्कार में बैठे एक अध्यापक की वह टिप्पणी रहीजिसमें उन्होंने उसके आदिवासी होने और उससे मिलने वाली सुविधाओं पर तंज किया था. कहानी में  जिलाधिकारी बनने पर वही लड़की अध्यापक को वह अपने कार्यालय में बुलाती है और धन्यवाद देती है कि आपके उन्हीं चुभते शब्दों के कारण आज मैं इस पद पर पहुंची हूं. उन्होंने दूसरी कहानी ‘आल द बेस्ट‘ शीर्षक से पढ़ीजिसमें अधिकारी परिवार और उनके गार्ड के आपसी व्यवहार को बारीकियों से उजागर किया गया था. कहानी सुनाने से पहले उन्होंने अपनी कथा-यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि वे बड़े सौभाग्यशाली थे कि घर में मां मालती जोशी के रूप में एक बड़ी कथाकार मेरे आस-पास थी. मैंने अपनी पहली रचना जब उनको सुनाई तब उनको विश्वास नहीं हुआ कि उसे मैंने लिखा है. मैंने कभी भी उनके नाम का फायदा रचना छपवाने के लिए नहीं किया. मेरी रचनाएं धर्मयुगरविवार एवं प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहीं और कई बार तो ऐसा हुआ कि धर्मयुग के एक ही अंक मेरी और उनकी रचनाएं साथ-साथ छपीं.

अपने रचनात्मक जीवन के बारे में डा जोशी ने बताया कि मैं रंगमंच से भी जुड़ा रहा और अब नौकरी के विभिन्न दायित्वों के कारण  लिखने का कम समय मिल पाता है. लेकिन सोशल मीडिया पर थोड़ा बहुत अवश्य लिखता रहता हूं. कई बार इस दबाव के चलते एक उपन्यास की परिकल्पना कहानी में सिमट जाती है. कार्यक्रम के पश्चात पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हमारी रचनाओं में कुछ बिखरी हुई कल्पनाएं और कुछ बिखरे हुए सच होते हैं. इन्हीं के तालमेल से एक रचना तैयार होती है. मैं कई साक्षात्कारों का हिस्सा रहता हूं. अतः वहीं कहीं से इस कहानी ‘वन योगिनी‘ के संदर्भ प्राप्त हुए. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने उनका स्वागत अंगवस्त्रम एवं साहित्य अकादेमी का प्रकाशन भेंट करके किया. साहित्य अकादेमी में ही ‘साहित्य मंच‘ कार्यक्रम में साहित्य द्वारा मनोभावों का विरेचन‘ विषय पर चर्चा हुई. कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाबी लेखक रवेल सिंह ने की. जानकी प्रसाद शर्मा एवं गरिमा श्रीवास्तव ने इस विषय पर अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए. सभी का कहना था कि कलाएं सृजक और उसके पाठक एवं श्रोता दोनों के मनोभावों का विरेचन करती हैं तथा नकारात्मक मनोभावों से मुक्त कर आनंदमय विश्रांति प्रदान करती हैं. वे हमें अंदर से बदल देती हैंजिसका गहरा प्रभाव हमारे जीवन पर भी दिखाई पड़ता है. दोनों कार्यक्रमों का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया.