नई दिल्ली: “भारत ललित कलाओं की सोने की खान है. हमारा सांस्कृतिक पुनरुत्थान प्राचीन ज्ञान को समकालीन प्रथाओं के साथ एकीकृत करता है, जिससे भारत की सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में छवि और मजबूत होती है.” यह बात उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संगीत नाटक अकादमी द्वारा संस्कृति मंत्रालय और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सहयोग से आयोजित भारतीय नृत्य पर अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि प्रदर्शन कलाओं में एकजुटता, उपचार और प्रेरणा की शक्ति होती है. नृत्य कलाकार शांति के दूत होते हैं, जो संवाद को बढ़ावा देते हैं और शांत कूटनीतिक युद्धाभ्यास के लिए आधार तैयार करते हैं. नृत्य सांस्कृतिक कूटनीति का एक बड़ा पहलू है, जो सीमाओं के पार आपसी समझ और संबंधों को बढ़ावा देता है. उपराष्ट्रपति ने महाकाव्यों के माध्यम से वैश्विक संस्कृति पर भारत के ऐतिहासिक प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि कला प्रभुत्व को परिभाषित नहीं करती; यह एकीकरण को परिभाषित करती है. रामायण का दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रसार, जो अंगकोर वाट में दिखाई देता है, हमारी सांस्कृतिक कूटनीति का प्रमाण है. उन्होंने कहा कि जब मैंने अंगकोर वाट का दौरा किया, तो मैं जटिल नक्काशी देखकर दंग रह गया- ऐसा लगता है जैसे पत्थर बोल रहा हो. यह सांस्कृतिक कूटनीति के लिए भारतीय कला की क्षमता को दर्शाता है.
उपराष्ट्रपति ने अतीत में दमन के दौर में भारत की कलात्मक परंपराओं के सामने आई चुनौतियों पर विचार करते हुए कहा कि लगभग 400-500 साल पहले हमारे इतिहास में एक समय था, जब हमारी सबसे कीमती सांस्कृतिक धरोहरों को उस समय के शासकों ने उनके मूल्यों के विपरीत मानते हुए त्याग दिया था. लेकिन जिन लोगों ने नृत्य और संगीत को आगे बढ़ाया, उन्हें हमेशा उच्च सम्मान दिया गया. उपराष्ट्रपति धनखड़ ने भारत के प्रत्येक क्षेत्र की अनूठी सांस्कृतिक पहचान का उल्लेख करते हुए कहा कि इस महान भूमि के प्रत्येक भाग में, जिले से जिले तक, आपको एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान मिलेगी. ‘एक जिला, एक उत्पाद‘ की तरह ही हमें नृत्य, संगीत और कला की स्थानीय परंपराओं पर जोर देते हुए ‘एक जिला, एक सांस्कृतिक कार्यक्रम‘ को मान्यता देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रदर्शन कलाएं न केवल भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा में योगदान देती हैं, बल्कि देश के युवाओं के पोषण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. हमारे युवाओं को नृत्य, संगीत और कलाओं में शामिल करने से उन्हें नशीली दवाओं के उपयोग जैसी हानिकारक आदतों से दूर रहने और सकारात्मक, रचनात्मक प्रयासों के साथ जुड़ने में मदद मिलेगी. कला के माध्यम से पोषित मानवता की सकारात्मकता और कल्याण हमारे समाज की समग्र भलाई में योगदान देगा. भारत की जीवंत और विविध सांस्कृतिक परंपराओं पर विचार करते हुए उपराष्ट्रपति ने माना कि यूनेस्को ने कालबेलिया, गरबा और चाउ सहित आठ भारतीय नृत्य शैलियों को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी है. इस अवसर पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, लोकसभा सांसद हेमा मालिनी, संस्कृति मंत्रालय के सचिव अरुणीश चावला, संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डा संध्या पुरेचा, पद्म विभूषण से सम्मानित डा पद्मा सुब्रमण्यम और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे.