दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर की सूची जारी करने के बाद हिंदी साहित्य जगत पर इसके प्रभावों पर चर्चा हुई जिसमें वरिष्ठ लेखिका और उपन्यासकार चित्रा मुदगल और साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त लेखिका अलका सरावगी ने हिस्सा लिया। चित्रा मुद्गल ने दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर सूची को एक सकारात्मक पहल करार दिया। उन्होंने ये कहा कि इस सूची में क्लासिक का दर्जा प्राप्त कर चुकी कृतियों का इस सूची में ना आना खटकता है। लेकिन उन्होंने खुद ही इस बात को भी साफ किया कि ये बेस्टसेलर यानि सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों की सूची है। जो कि पुस्तकों की दुकानों और ऑनलाइऩ सेल को मिलाकर तैयार की जाती है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए चित्रा मुद्गल ने जोर देकर कहा कि हमें इस सूची पर कई तरह की आपत्तियां हो सकती हैं लेकिन उन आपत्तियों से इसका महत्व कम नहीं होता है। इस सूची में जिस तरह के लेखकों के नाम आ रहे हैं वो हमें आश्वस्त तो करते ही हैं। चित्रा मुद्गल ने अपने दौर को याद करते हुए कहा कि उस दौर में कई ‘क्लासिक’ और ‘गंभीर’ लेखन करनेवाले लेखक थे और गुलशन नंदा भी लिख रहे थे। गुलशन नंदा की किताबें हम सबसे से ज्यादा बिकती थीं। लेकिन इससे गुलशन नंदा का महत्व कम नहीं हो जाता है। इसी तरह से ज्यादा बिकनेवाले लेखकों का महत्व कम नहीं होता है। हिंदी के विकास में उऩकी भी एक भूमिका है। उन्होंने तीन साल पहले लिखे उपन्यास अपने ‘नाला सोपारा, पो. बॉक्स नंबर 203’ और बेस्टसेलर सूची में आए नवोदित लेखक भगवंत अनमोल के उपन्यास ‘जिंदगी 50-50’ का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि ‘कई लोगों ने उनको कहा कि दोनों उपन्यासों की कथाभूमि एक ही है और दोनों किन्नरों के जीवन पर आधारित है। वो इस सूची में आ सकता है तो आप क्यों नहीं।‘ चित्रा मुद्गल के मुताबिक उन्होंने दोनों उपन्यासों की तुलना करनेवालों की आपत्तियों को खारिज कर दिया और कहा नई पीढ़ी अपने तरीके से अपनी सोच के आधार पर लिखती है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। नई पीढ़ी अपनी पुस्तकों की बिक्री को लेकर सोशल मीडिया से लेकर तमाम उपलब्ध साधनों का उपयोग करती है जिसमें हमारी पीढ़ी के लोग जरा पीछे रह जाते हैं। कोलकाता से आई उपन्यासकार अलका सरावगी ने चित्रा मुदगल की कई बातों से असहमति जताई । उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बेस्टसेलर की सूची के साथ बिक्री के आंकड़ों को भी जारी किया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि भगवतीचरण वर्मा और रेणु की पुस्तकें बेस्टसेलर की सूची में क्यों नहीं आती हैं। अलका सरावगी ने अपने उपन्यास की बिक्री के बारे में अपना एक अनुभव भी साझा किया। अलकी के मुताबिक जब उनका उपन्यास ‘जानकीदास तेजपाल मेंशन’ छपा था तो उन्होंने फेसबुक पर अपने पाठकों के सामने इस पुस्तक को खरीदने के विकल्प रखे थे और उसके अच्छे नतीजे आए थे। लेकिन बाद में हिंदी जगत में इस बात को लेकर बखेड़ा खड़ा हो गया । उनपर फेसबुक पर किताब बेचने के आरोप लगे। जे के रॉलिंग की किताब ‘हैरी पॉटर’ की बिक्री के आंकड़ों को पेश करके पश्चिमी देशों में बेस्टसेलर की अवधारणा को भी अलका सरवागी ने प्रस्तुत किया। अलका सरावगी ने ये भी कहा कि लेखक को बिकी के लिए तमाम तरह के यत्न नहीं करने चाहिए। उन्होंने कई तरह से बाजार पर प्रहार किए और कहा कि बाजार साहित्य की चीजें नहीं तय कर सकता है। अलका की इन स्थापनाओं को लेकर चित्रा मुदगल ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि जब भी कोई भी लेखक प्रकाशक के पास अपनी पांडुलिपि लेकर जाता है तो उसकी ख्वाहिश होती है कि उसकी किताबें बिके। लेखकों को बाजार तो चाहिए। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि बाजार से साहित्य का नुकसान नहीं होता है और ना ही हो सकता है बल्कि उसकी जगह बाजारवाद साहित्य के लिए खतरनाक है। चित्रा मुदगल के मुताबिक हिंदी के लेखकों को बाजार और बाजारवाद के फर्क को समझना होगा। अगर बाजार नहीं होता तो किताबें बिकेंगी कहां और लेखकों को रॉयल्टी कैसे मिलेगी। एक तरफ तो हम कम रॉयल्टी का रोना रोते हैं और दूसरी तरफ बाजार को कोसते हैं जो ठीक नहीं है। लेखकों को बाजारवाद के आसन्न खतरे से चित्रा मुदगल ने आगाह किया। दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर पर आयोजित सत्र का संचालन अनंत विजय ने किया।
दैनिक जागरण बेस्टसेलर की सूची जारी होने के मौके पर ऐसे भी कई लेखक और अनुवादक मौजूद थे जिनकी पुस्तकों को तीसरी सूची में स्थान मिला है। लेखिका अनु सिंह चौधरी की किताब ‘नीला स्कार्फ’ ने कथा श्रेणी में अपनी जगह बनाई। बेस्टसेलर सूची के जारी होने के बाद अनु सिंह चौधरी ने कहा कि ‘लिखनेवाले किरदार गढ़कर, कहानियां रचकर भूल जाते हैं और ऐसे में चली आई ये बेस्टसेलर की सूची याद दिला देती है कि पढ़नेवाले नहीं भूले आपकी किताब। ‘नीला स्कार्फ’ 2014 में प्रकाशित हुई थी। हैरान हूं, और शुक्रगुज़ार भी कि तीस से ज़्यादा शहरों में किताब की दुकानों से लोगों ने खरीदी है ये किताब, और पढ़ी भी। उनके पढ़ने का यकीन इसलिए है क्योंकि गाहे बगाहे पाठकों के ईमेल आ जाते हैं। इस सूची में होने की खुशी उतनी ही है जितनी अपने किसी पाठक के लिखे हुए ईमेल को पढ़कर होती है। सच कहूं तो बड़ा हौसला मिला है कि लिखना ज़ाया नहीं गया, और पढ़नेवाले ढूंढकर पढ़ रहे हैं आपकी किताब। यही कामना है कि इस सूची में हर तिमाही नए नाम जुड़ते रहें ताकि पढ़नेवालों के सिरहाने नई नई किताबें पढ़कर सहेजी जाती रहें। सीची में नाम आने पर अनुवादक उर्मिला गुप्ता और सुमन परमार ने भी खुशी जाहिर की।