नई दिल्ली: रामविलास शर्मा ने जातीयता के प्रश्न पर किसी राजनीतिज्ञ से भी अधिक गहराई से चिंतन और लेखन किया. हिंदी आलोचना के मौजूदा ढांचे को बनाने में उनकी भूमिका रामचंद्र शुक्ल जैसी ही है. उनका सादगीपूर्ण और अनुशासित जीवन आज के लेखकों और आलोचकों के लिए एक मिसाल है. ये बातें रामविलास शर्मा की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने कही. प्रतिष्ठित आलोचक रामविलास शर्मा की 112वीं जयंती पर उनकी स्मृति में राजकमल प्रकाशन ने एक कार्यक्रम आयोजित किया. इस अवसर पर रामविलास शर्मा की पांच खंडों में प्रकाशित रचनावली के दूसरे भाग ‘भाषा और भाषाविज्ञान‘ का लोकार्पण हुआ. इंडिया इंटरनेशनल सेंटर-एनेक्सी में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए मृत्युंजय ने कहा कि रामविलास शर्मा हिंदी आलोचना की जीवंत बहसों के केंद्र थे. उनका मकसद हिंदी समाजहिंदी कौम और हिंदी नवजागरण जैसे मुद्दों पर सही समझ बनाना था. वीर भारत तलवार ने रामविलास शर्मा के साथ अपने निजी संबंधों को याद किया. उन्होंने कहा कि आलोचना में जैसी नैतिक दृढ़ता और उच्चता रामविलास जी में थी वैसी किसी और में नहीं मिलती. जातीयता के प्रश्न पर विचार करना मैंने भी उन्हीं से सीखा. उन्होंने जातीयता और जातीय समस्या पर जितना चिंतन और लेखन किया उतना किसी और ने नहीं किया. जातीय समस्या राजनीति से जुड़ा विषय होने के बावजूद इस पर किसी राजनीतिक व्यक्ति से अधिक विचार रामविलास जी ने किया.

प्रोफेसर गरिमा श्रीवास्तव ने अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान जेएनयू में रामविलास शर्मा के अध्यापन को याद करते हुए कहा कि वे बहुत सादगी से रहते थे और बेहद अनुशासित जीवन जीते थे. उन्हें देखकर लगता था कि हमें भी इसी तरह का अनुशासित जीवन जीना चाहिए. इतना सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए उन्होंने जो विपुल लेखन कियावह आज के लेखकों और आलोचकों के लिए एक मिसाल है. उन्होंने ‘रामविलास शर्मा का भाषा चिंतन‘ विषय पर प्रपत्र प्रस्तुत किया. कवितेन्द्र इन्दु ने रामविलास शर्मा के लेखन और चिंतन पर आलोचनात्मक वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि हिंदी आलोचना के मौजूदा ढांचे को निर्मित करने में जैसी भूमिका रामचंद्र शुक्ल की हैवैसी ही रामविलास शर्मा की है. उन्होंने रचना और रचनाकार के बीच अंतराल को मिटा दिया. रामविलास शर्मा ने एक लंबा लेखकीय जीवन जिया और उम्रभर उसमें बदलाव भी लाते रहे. वे बदलाव कई बार पूरी तरह से विपरीत भी होते थे. उन्होंने कहा कि रामविलास शर्मा के सरोकार स्पष्ट थे और वे लगन के एकदम पक्के थे. वे जिस विषय पर काम करना शुरू करते तो फिर उसकी पूरी गहराई तक जाते थे. उसे वे बीच में छोड़ते नहीं थे. संचालन कवि-आलोचक मृत्युंजय ने किया. राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि अस्सी के दशक में रामविलास शर्मा जी की ऐसी विराट उपस्थिति थी कि उनसे मिलने जाने की बात सोचना भी आसान नहीं था. लेकिन मैं जब उनसे मिलने गया तो वे बहुत सहजता से मिले. उनसे प्रकाशन के लिए किताब मांगी तो उस समय तो नहीं पर कुछ समय बाद उनका एक पत्र आया और उन्होंने किताब दी. फिर उनकी किताबें आती रहीं.